स्थानीय ‘लोकसभा’ का चुनाव

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हमारे शहर की ‘लोकसभा’ का चुनाव घोषित हो गया है। कृपया ‘नगर परिषद’ के चुनाव को ‘लोकसभा’ का चुनाव ही माना जाए, नहीं मानेंगे तो भी यह महाचुनाव लोकसभा चुनाव जैसा प्रतिष्ठित ही रहेगा। प्रचार और प्रसार, जोर और शोर से शुरू हो चुका है। इतनी प्रकाशित सामग्री तो राष्ट्रीय लोकसभा के चुनाव में भी नहीं मिली। हालांकि चुनाव संहिताजी ने हमेशा की मानिंद कहा है कि एक उम्मीदवार के साथ पांच से ज्यादा समर्थक प्रचार के लिए नहीं जाएंगे, लेकिन सशक्त उम्मीदवार को जिताना ज़्यादा ज़रूरी होता है, इसलिए समर्थक आए बिना रह नहीं पाते। परसों ही वर्तमान पार्षद नया मास्क पहन कर समर्थकों के साथ आए, बोले, आशीर्वाद बनाए रखना। उनके समर्थकों ने अपनी पसंद के, अपनी पसंद से मास्क ज़रूर लगाए या लटकाए हुए थे। मकान के मुख्य द्वार के बाहर लगी नेम प्लेट गौर से पढक़र बोले, भाई साहिब, पहले यह बताएं कि इसमें क्या लिखा है। नेम प्लेट में सबसे पहले मेरी बेटी का नाम, फिर बेटे, पत्नी और अंत में नाचीज़ का रहा। बोले, मुझे हमेशा लगता था कि आपने गूढ़ हिंदी में कुछ लिखा है।

हमने सोचा वाह! क्या रचनात्मक क्षण हैं, पारिवारिक सदस्यों के नाम भी राजनीति को कविता लग रहे हैं। उन्होंने बच्चों के नाम का अंग्रेजी अर्थ भी पूछा, बोले आपने अपने से पहले हमारी आदरणीय भाभीजी का नाम लिखकर, क्या कहते हैं महिला शस्त्रीकरण कर दिया। साथ आए अध्यापक ने सकुचाकर संशोधन करते हुए कहा, शस्त्रीकरण नहीं महिला सशक्तिकरण। जाते हुए बोले, वाह जी वाह, बस, आशीर्वाद देना जी। हमें लगा इस बार इनको सिर्फ आशीर्वाद चाहिए। शासक पार्टी समर्थित संभावित पार्षद आए, स्वाभाविक है उनके साथ डेढ़ दर्जन समर्थक होने ही थे। हाथ जोड़ नमस्कार के बाद बोले, ध्यान रखनाजी, इन सबने मुझे खड़ा कर दिया। हमने निवेदन कर उनका लटका हुआ मास्क ऊपर करवाया तो मुस्कुराने लगे।

वैसे भी इतने लोग एक साथ आएं या जाएं दो गज की उचित दूरी बनाए रखना कुछ ज्यादा मुश्किल हो जाता है। उनके साथ आए स्थानीय प्रसिद्ध समाज सेवक हमारी प्रशंसा करते हुए बोले, इनको तो हमेशा से सब जानते हैं जी, बहुमुखी प्रतिभा के धनी हैं। इनके फादर साहब भी बहुत टेलेंटेड आदमी हुआ करते थे। बदले हुए माहौल में कितना नया, ताज़ा सा लगता है जब साफगोई में बदनाम पुत्र के सामने साफगोई में बदनाम पिता को प्रसिद्ध व बहुमुखी प्रतिभावान बताया जाता है। जोड़े हुए हाथों से फिर बोले, भाई साहिब ध्यान रखना। छोटा सा इलेक्शन है जी। उनके जाने के थोड़ी देर बाद निवृत हो रहे पार्षद की पत्नी, हमारी पड़ोसिन जगत भाभीजी के साथ आई और जीवन में पहली बार काफी देर तक बैठ कर गई। हमारे जीवन में लोकसभा चुनाव से भी ज्यादा हलचल हो रही थी। कल शाम को संभावित पार्षद के साथ ग्यारह बंदों की टीम, फिर से ‘ध्यान रखनाजी’ बोल कर गई। फिर रात को आठ बजे, पहले वाले अपनी पत्नी के साथ आए और वोटर विवरण देकर गए। थोड़ी देर बाद दूसरों ने भी भेजा। नगरपालिका का चुनाव लडऩे वाला हर व्यक्ति आजकल समाजसेवी, युवा, शिक्षित, मेहनती, संघर्षशील, सुख-दुख में रात-दिन साथ खड़े होने वाला हो गया है। आज मुझे वोट डालने जाना है, मज़ाक नहीं है, आखिर हमारे शहर की सांसद चुनी जा रही है।

(स्वतंत्र लेखक)

-प्रभात K.-

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