मोदी-शाह की जोड़ी एक साथ कई मुद्दे उछाल कर विपक्ष को कन्फ्यूज कर देती है It is the extreme politics that Bharat is witnessing these years. And of course extreme matter of pride as a Bhartiye.
‘भारत’ शब्द हमारी खाटी संस्कृति, देशी रीति-रिवाजों और पुरानी परंपराओं की आत्मा है, तभी उसे भारत माता कहके पुकारते आए हैं। गुजरा वक्त इसी शब्द से गुलजार रहा था। लेकिन जब अंग्रेजों की घुसपैठ हुई, तो उन्होंने अपने मुफादित नया नाम ‘इंडिया’ गढ़ दिया जिसे भारतीयों को ना चाहते हुए भी अपनाना पड़ा।

200 सालों तक देश उनका बंधक रहा, इस बीच ये नाम भी प्रचलित होता गया। आजादी से लेकर आजतक यानी 275 वर्षों से भारत की जगह इंडिया शब्द ही बोला और लिखा जाता रहा। समूचा संसार भी इंडिया से ही जानता-पहचानता और पुकारता है। ये सच्चाई वैसे हम सभी जानते हैं कि भारत का अंग्रेजी नाम इंडिया अंग्रेजों की देन है। क्योंकि इंडिया की उत्पत्ति इंडस यानी सिंधु शब्द से है जो यूनानियों द्वारा चौथी सदी ईसा पूर्व से प्रचलन में रही। इंडिया नाम पुरानी अंग्रेजी में 9वीं सदी में और आधुनिक अंग्रेजी में 17वीं सदी से मिलता है।

चाहे प्राचीन भारत की बात हो, या आधुनिक समय की, दोनों के परिसंगम में हमारी परंपराओं और घरेलू संस्कृतियों में इंडिया शब्द का कोई वास्ता नहीं? पर, शायद अब भारत के माथे पर जबरन गोदा गया इंडिया नाम सदैव के लिए लुप्त होने की कगार पर है जिसकी अधिकृत शुरुआत देश की महामहिम द्वारा उस समय हुई, जब उनके कार्यालय से जी-20 कार्यक्रम को लेकर नामचीन हस्तियों को निमंत्रण भेजे गए। निमंत्रण पत्र में उनके पद से ‘इंडिया’ शब्द हटा हुआ दिखा।

अक्सर, भारत के राष्ट्रपति के पद के आगे ‘दा प्रेसिडेंट ऑफ इंडिया’ लिखा होता था। पर, उस स्थान पर ‘दा प्रेसिडेंट ऑफ भारत’ शब्द दिखाई दिया। जाहिर है इसके बाद सियासी हंगामा कटता और हंगामा कटते हुए देर नहीं लगी? हिंदुस्तान के तकरीबन सभी सियासी दल केंद्र सरकार विशेषकर प्रधानमंत्री पर हमलावर हो गए हैं। सभी एक सुर में बोलने लगे कि प्रधानमंत्री संविधान से भी छेड़छाड़ करने लगे हैं।
कांग्रेस नेता जयराम की टिप्पणी आई, बोले इंडिया शब्द से आपत्ति क्यों है प्रधानमंत्री को? क्या इसलिए कि जब से विपक्षी दलों ने सामूहिक रूप से अपने संयुक्त गठबंधन का नाम इंडिया रख लिया है। जबकि, इससे पूर्व अपने नौ वर्षों के कार्यकाल में प्रधानमंत्री ने अपनी करीब 150 योजनाओं के नाम इंडिया शब्द से ही रखे।

चाहे खेलो इंडिया हो या स्टार्टअप इंडिया? विपक्ष इसे बड़ा चुनावी मुद्दा बनाने के मूड में है। समूचा विपक्ष विशेष सत्र में इसे मजबूती से उठाएगा। लेकिन, सरकार ने सत्र आने से पहले ही ऐसा धमाका कर दिया जिससे विपक्ष में भगदड़ मच गई। उनमें अभी तक शोर सिर्फ ‘एक देश, एक चुनाव’ को लेकर था। लेकिन एक और बड़ा बम फोड़ डाला। मोदी-शाह की जोड़ी एक बात ठीक से जानती है कि एक साथ इतने मसले उठा दो, जिससे विपक्ष कन्फ्यूज हो जाए, कि कौन-सा उठाएं, कौन-सा नहीं?
बहरहाल, ‘इंडिया’ को ‘भारत’ कर देना, ये संवैधानिक रूप से सभी सियासी दलों के साथ मंत्रणा करने वाला मुद्दा है। हालांकि अभी भी संदेह के कुछ बादल मंडरा रहे हैं। मात्र राजनीतिक गलियारों में ही चर्चाएं हैं। स्थिति अभी भी साफ नहीं है कि वास्तव में ऐसा होगा, या संविधान से इंडिया शब्द को हमेशा के लिए हटाया जाएगा।

केंद्र सरकार द्वारा बुलाए जा रहे विशेष सत्र में क्या इस मसले पर चर्चा होगी? मसौदा पेश होगा या फिर कोई बिल लाया जाएगा? वैसे, मुद्दा ज्यादा पेचीदा नहीं है कि आसानी से सुलझाया ना जाए? पर, बात वहीं आकर अटक जाती है कि क्या इस बाबत केंद्र सरकार विपक्ष को विश्वास में लेगी, या पूर्व की भांति इस बार भी सबको दरकिनार करके अपने निर्णय पर आगे बढ़ेगी। विपक्षी दल ज्यादातर इसी बात से नाखुश हैं कि सरकार किसी बड़े निर्णय में उन्हें शामिल नहीं करती, अपने मन-मुताबिक फैसले ले लेती है।
भारत-इंडिया की लड़ाई के इतर अगर बात करें, तो केंद्र में मोदी सरकार के बीते साढ़े नौ वर्षों के कार्यकाल में बहुत कुछ बदला-उल्टा गया। देखा जाए तो कहीं-कहीं जरूरी भी था। मुगल, शाहजहां व अकबर जैसे तमाम पूर्व शासकों के वक्त के इतिहास को बदला गया। उनके द्वारा रखे गए नामों को हटाने का कार्य बीते कई वर्षों से बदस्तूर जारी है। जैसे, पुरानी इमारतें, रेलवे स्टेशनों आदि का नया नामकरण हुआ। इसके अलावा अंग्रेजों के वक्त से चले आ रहे करीब 1500 सौ पुराने कानूनों को खत्म किया है। अंग्रेजों की बनाई संसद को भी स्वदेशी नए भवन में हस्तांतरित कर दिया गया है।

इंडिया नाम पड़ने की थ्योरी से तो सभी वाकिफ हैं, लेकिन भारत कैसे पड़ा। इसकी मुकम्मल जानकारियों का बहुत अभाव रहा है। हालांकि, भारत शब्द के पीछे तर्क कोई एक नहीं, बल्कि बहुतेरे हैं। पर, हिंदुओं के महान पौराणिक ग्रंथ ‘स्कन्द पुराण’ के अध्याय संख्या-37 के मुताबिक ऋषभदेव नाभिराज के पुत्र का नाम भारत था, जो बड़े बलशाली और शूरवीर थे, उन्हीं के नाम से हमारे देश का नाम भरत पड़ा। इसका उल्लेख कई जगहों पर मिल जाएगा कि भारतवर्ष का नाम ऋषभदेव के पुत्र भरत के नाम पर हुआ।
हिंदुस्तान शब्द की भी अपनी एक अद्भुत कहानी है। ज्यादातर लोग यही समझते हैं कि हिंदुस्तान हिंदुओं की बहुतायत के चलते पड़ा। जबकि, ऐसा है नहीं? हिन्दू और हिन्द दोनों फारसी शब्द हैं जो इंडो-आर्यन संस्कृत सिंधु से आए हैं। आचमेनिड सम्राट डेरियस प्रथम ने लगभग 516 ईसा पूर्व में सिंधु घाटी पर विजय प्राप्त की थी, जिसके बाद ये शब्द सिंधु घाटी के लिए इस्तेमाल किया गया।

इंडिया शब्द को हटाने को लेकर सियासत में सुगबुगाहट ही नहीं, बल्कि गर्माहट भी बढ़ गई है। चर्चाएं ऐसी हैं कि हो सकता है बुलाए गए संसद के विशेष सत्र में केंद्र सरकार संविधान से ’इंडिया’ शब्द को हटाने कोई बिल आए। प्रस्ताव की तैयारियों की हलचल दिखने भी लगी है।
अभी कुछ दिन पहले ही तो आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत ने भी कहा था कि सदियों से हमारे देश का नाम भारत रहा है? यही रहना चाहिए। इसके लिए उन्होंने केंद्र सरकार से बाकायदा अपील की है कि इंडिया की जगह भारत शब्द का इस्तेमाल हो। फिलहाल इस मसले को लेकर राजनीति जबरदस्त शुरू हो गई है। पर, ज्यादातर देशवासी इस पक्ष में हैं कि देश को भारत ही बोला जाए। यूरोपीय देशों की भांति अगर इस मसले को लेकर केंद्र सरकार जनमत करवाए, तो परिणाम निश्चित रूप से उनके पक्ष में होंगे। बावजूद इसके मसला भयंकर रूप से पेचीदा है, विपक्ष इतनी आसानी से इंडिया को भारत शायद ही होने दे।
आगामी संसद के विशेष सत्र पर बहुत कुछ निर्भर करता है कि उसमें क्या वास्तव में इसको लेकर केंद्र सरकार विधेयक लाएगी। अगर लाएगी तो क्या उन्हें सफलता मिलेगी। फिलहाल ये मुद्दा संसद सत्र तक गर्म रहेगा, ये तय है।