बस स्त्री ही रहने दो मुझे

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मैं स्त्री हूं, प्रायः घर की देवी भी कहलाती हूं,
कहीं प्रताड़ित, तो कहीं पूजी जाती हूं।

कहीं मेरा मान सम्मान किया जाता है,
कहीं मुझे कोख में ही मार दिया जाता है।

कभी बड़े चाव से सोलह शृंगार करते है,
कभी भरी सभा में, वस्त्र भी तो हरते है।

कभी वंश वृद्धि के लिए सर माथे बिठाते हैं,
कभी रहन सहन पर, बेबात ही उंगली उठाते है।

देख चोंचले समाज के, आ जाता है रोष मुझे,
पूछती हूं दर्पण से, क्यों जड़ा यह दोष मुझे?

क्यों मर्यादा की बेड़ी ने, स्त्रियों को ही जकड़ा है,
मान की जंजीरों ने, पुरुषों को कब पकड़ा है?

जिद्दी, अड़ियल, ढीठ, चाहे जो कह लो मुझे,
देवी की संज्ञा न दो, बस स्त्री ही रहने दो मुझे।

Sarika Agarwal

A thinker and socialite Sarika Agarwal is working for woman empowerment. She is also an independent relationship counsellor.

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