Poem – इंसान परेशान बहुत है

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अच्छी थी पगडंडी अपनी।

सड़कों पर तो जाम बहुत है।।

फुर्र हो गई फुर्सत अब तो।

सबके पास काम बहुत है।।

नहीं जरूरत बुज़ुर्गों की अब।

हर बच्चा बुद्धिमान बहुत है।।

उजड़ गए सब बाग बगीचे।

दो गमलों में शान बहुत है।।

मट्ठा, दही नहीं खाते हैं।

कहते हैं ज़ुकाम बहुत है।।

पीते हैं जब चाय तब कहीं।

कहते हैं आराम बहुत है।।

बंद हो गई चिट्ठी, पत्री।

फोनों पर पैगाम बहुत है।।

आदी हैं ए.सी. के इतने।

कहते बाहर तापमान बहुत है।।

झुके-झुके स्कूली बच्चे।

बस्तों में सामान बहुत है।।

सुविधाओं का ढेर लगा है।

पर इंसान परेशान बहुत है।।

Pintoo Sharma – (Fatehpur Shekhawati, Rajasthan)

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