डेटा से नहीं आटा से भरेगा पेट

WhatsAppFacebookTwitterLinkedIn

इन दिनों सारी दुनिया डेटा के पीछे भाग रही है। सारे देश डेटा की बात कर रहे हैं। लेकिन आटा को सब भूल गए थे। समय कभी रुकता नहीं है, जिस तरह से पृथ्वी,सूर्य और चांद निश्चित गतिशीलता के साथ एक दूसरे की परिक्रमा करते रहते हैं। ऊपर से नीचे और नीचे से ऊपर घड़ी की सुई का आना गतिशीलता का प्रमाण है। उसी नियति मे अब हम भी डेटा की जगह आटे की चिंता करने मजबूर हो रहे हैं। 50 से लेकर 70 के दशक तक भारत में भी लाल गेहूं का आयात होता था। लोगों को पेट भरने के लिए पर्याप्त खाद्यान्न उपलब्ध नहीं था। वही स्थिति एक बार फिर वैश्विक स्तर में देखने को मिलने लगी है। विश्व के देश खाद्यान्न की कीमतों को स्थिर रखने के लिए विशेष रूप से गेहूं और चावल जो भूख मिटाने वाला महत्वपूर्ण खाद्यान्न है। उनकी कीमतों पर नियंत्रण करने, आपूर्ति सुनिश्चित करने के लिए, सारे देश हैरान परेशान होकर आटा और चावल की बात करने लगे हैं। प्रथम एवं द्वितीय विश्व युद्ध के बाद सारी दुनिया के देशों में भारी खाद्यान्न संकट था। पिछले 5 दशकों में दुनिया के देशों में खाद्यान्न का उत्पादन तेजी के साथ बढ़ा था। जनसंख्या बढ़ने के साथ-साथ खाद्यान्न उत्पादन बढ़ने से लोगों को पेट भर भोजन मिल पा रहा था। इसके साथ ही दलहन, तिलहन और दुग्ध उत्पादन जो मानवीय जीवन के लिए जरूरी उत्पाद है। उनका भी उत्पादन लगातार बढ़ता रहा। जिसके कारण हम उनकी अहमियत को भूल गए थे।

रूस और यूक्रेन के युद्ध ने एक बार फिर खाद्यान्न की अहमियत सारी दुनिया के देशों को समझा दी है। खाद्य वस्तुओं के दाम तेजी के साथ बढ़ रहे हैं। इस वृद्धि में उत्पादक किसानों को कोई लाभ नहीं मिल रहा है। सारा लाभ कारपोरेट बिचोलिया कंपनियां उठा रही हैं। सरकारें भी टैक्स के रूप में भारी कमाई कर रहे हैं। अब खाद्यान्न की कमी,सभी देशों के लिए सबसे बड़ी समस्या बन गई है। रूस ने यूक्रेन से निर्यात होने वाले गेहूं एवं खाद्यन्न पर जो छूट दे रखी थी। उसे समाप्त कर दिया है। वैश्विक स्तर पर गेहूं की कीमतें 5 फ़ीसदी से ज्यादा बढ़ गई हैं। बढ़ी हुई कीमतों पर भी गेहूं उपलब्ध नहीं हो पा रहा है। खाद्य तेलों के उत्पादन पर भी इसका असर पड़ा है। चावल निर्यात को लेकर भी विसंगति देखने को मिल रही है। कई देशों में चावल की भारी मांग है,लेकिन उन्होंने अपनी मांग के अनुसार चावल उपलब्ध नहीं हो रहा है। कई देशों की आर्थिक स्थिति इतनी खराब हो चुकी है, कि वह खाद्यान्न का आयात ही नहीं कर पा रहे हैं।

जी-20 समूह के वित्त मंत्रियों की बैठक भारत में हो रही है। रूस ने जो प्रतिबंध लगाए गए हैं। वित्त मंत्रियों ने उसकी निंदा करते हुए,खाद्य पदार्थों की कीमतों पर पड़ने वाले असर पर चिंता जाहिर की है। पिछले एक दशक में खाद्यान्न की कीमतें बड़ी तेजी के साथ बढी हैं। कृषि उत्पादन की लागत लगातार बढ़ती ही जा रही है। इसका मुख्य कारण सरकारों द्वारा बड़े पैमाने पर टैक्स बढ़ाना प्रमुख कारण है। खाद्यान्न परिवहन की लागत बढ़ती जा रही है। किसानों की उत्पादन लागत बढ़ने से कई देशों में किसानों को लागत मूल्य भी नहीं मिल पा रहा है। आर्थिक दृष्टि से किसान बहुत कमजोर होता है। वह कर्ज में डूबा हुआ है। जैसे ही फसल तैयार होती है, उसे ओने पौने दामों में बेचने के लिए विवश होना पड़ता है। बड़ी-बड़ी कारपोरेट कंपनियां उस समय सस्ते में गेहूं चावल और अन्य खाद्यान्न खरीद कर स्टाक करती हैं। उसके बाद कई गुना ज्यादा दामों में बेचकर भारी मुनाफा कमा रही हैं। पिछले दो दशक में यह प्रवृत्ति, सारी दुनिया के देशों में देखने को मिल रही है। खाद्यान्न पर अब किसानों का नहीं कारपोरेट कंपनियों का अधिकार हो रहा है। अब जो नई परिस्थिति देखने को मिल रही है। उसमें डेटा की जगह आटा की बात होने लगी है। पेट नहीं भरेगा, तो डाटा,एआई तकनीकी और रोबोट इत्यादि से जीवन तो चलेगा नहीं। जी-20 की बैठक में वित्त मंत्रियों क़ी यह चिंता दिखने लगी है। पिछले 5 वर्षों में कर्ज की मार से दुनिया के दर्जनों देश लगभग दिवालिया हो चुके। कई देशों का खाद्यान्न संकट विद्रोह का कारण बनने लगा है। इसलिए अब राज नेताओं की चिंता भी डाटा के साथ-साथ आटा मे भी दिखने लगी है। एक बार फिर इतिहास अपने आप को दोहराता हुआ नजर आ रहा है। एक बार फिर सारी दुनिया के देश खाद्यान्न संकट में फंसते हुए दिख रहे हैं।

Share Reality:
WhatsAppFacebookTwitterLinkedIn

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *