अनसुनी कहानी- 5 फुट जमीन न दे सकें

WhatsAppFacebookTwitterLinkedIn

कांग्रेस की सरकार ने चंद्रशेखर आज़ाद की माताजी की मूर्ति स्थापित नहीं होने दी |अवैध और गैरकानूनी कार्य घोषित कर दिया गया

माँ के लिए चंदू और देश के लिए आज़ाद यानि शहीद चंद्रशेखर आज़ाद. जी हाँ, वही आज़ाद जिनके बारे में हम जानते है कि इन्होने देश की खातिर हँसते हुए अपनी जान तक न्योछवर कर दी….हाँ वही आज़ाद जिनकी बन्दुक में आखिरी गोली बचने पर जिन्होंने सोचा कि अंग्रेजो के हाथ गोली खाने से ज्यादा आनंददायी खुद के हाथो शहीद होना बेहतर है. देश आज़ाद को जानता है और जानता है उनकी कुर्बानी को, लेकिन कुछ बातें ऐसी भी है जिन्हे हम नहीं जानते. चलिए एक ऐसी ही कहानी बताते है

जंगल में लकड़ी बिन रही एक मैली सी धोती में लिपटी बुजुर्ग महिला से वहां खड़ें एक भील ने हंसते हुए कहा – “अरे बुढिया! तू यहाँ न आया कर, तेरा बेटा तो चोर-डाकू था. इसलिए गोरों ने उसे मार दिया“

लेकिन बुढ़िया ने बड़े ही गर्व से कहा – “नही चंदू ने देश की आजादी के लिए कुर्बानी दी हैं.”

बुजुर्ग औरत का नाम जगरानी देवी था, जिन्होंने पांच बेटों को जन्म दिया था. इसी माँ का आखिरी बेटा कुछ दिनों पहले ही शहीद हुआ था. माँ जहाँ अपने इस लादले बेटे को चंदू कहती तो वही दुनिया उसे चंद्रशेखर आजाद के नाम से जानती हैं.

आज़ाद के मित्र सदाशिव –

ये वो वक़्त था जब हिंदुस्तान को आज़ादी मिल चुकी थी. आजाद के एक करीबी मित्र सदाशिव राव अचानक आजाद के माता-पिता जी की खोज करते हुए सीधे उनके गाँव पहुँच गए. देश को आजादी मिल चुकी थी लेकिन इसे बहुत कुछ छीन लिया था. चंद्रशेखर आज़ाद की शहादत के कुछ वर्षों बाद ही उनके पिता जी की भी मृत्यु हो गयी थी. जबकि आज़ाद के भाई की मृत्यु भी इससे पहले ही हो चुकी थी. आज़ाद के पिता की मृत्यु बेहद निर्धनावस्था में हुई जिसके पश्चात् आज़ाद की निर्धन निराश्रित वृद्ध माताश्री ने ऐसी अवस्था में भी किसी के आगे हाथ ना फैलाए.

उन्होंने खुद ही जंगलों में जाकर लकड़ी और गोबर बिन्ना शुरू किया और कंडे और हाथ फ़ैलाने की बजाय लकड़ी बेचकर अपना पेट पालना जरुरी समझा. लेकिन वृद्धावस्था के चलते वे इतना भी काम नहीं कर पाती थी कि भरपेट भोजन का प्रबंध कर सकें. यहाँ तक कि दाल चावल गेंहू और उसे पकाने का ईंधन खरीदने लायक धन कमाने की शारीरिक सामर्थ्य उनमे शेष ही नहीं थी. शर्म की बात तो यह रही कि उनकी यह स्थिति देश को आज़ादी मिलने के 2 वर्ष बाद भी वैसी ही रही.

अंत समय –

सदाशिव ने चंद्रशेखर आज़ाद जी को एक वचन दिया था जिसके चलते वे आज़ाद की माताजी को अपने साथ अपने घर झाँसी लेकर आ गए. उनकी स्वयं की स्थिति अत्यंत जर्जर होने के कारण उनका घर भी बहुत छोटा था अतः उन्होंने आज़ाद के ही एक अन्य मित्र भगवान दास माहौर के घर पर आज़ाद की माताश्री के रहने का प्रबंध किया था और उनके अंतिम क्षणों तक उनकी सेवा की. मार्च 1951 के दौरान आजाद की माँ जगरानी देवी का झांसी में निधन हुआ. यहाँ सदाशिव जी ने ही उनका सम्मान अपनी माँ के समान करते हुए उनका अंतिम संस्कार स्वयं अपने हाथों से ही किया था .

सरकार का आदेश 

इसके बाद आज़ाद की माताश्री के देहांत के पश्चात झाँसी की जनता ने उनकी स्मृति में उनके नाम से एक सार्वजनिक स्थान पर पीठ का निर्माण किया. लेकिन प्रदेश की तत्कालीन सरकार (इस दौरान यहाँ कांग्रेस की सरकार थी और मुख्यमंत्री थे गोविन्द बल्लभ पन्त) ने इस निर्माण को झाँसी की जनता द्वारा किया हुआ अवैध और गैरकानूनी कार्य घोषित कर दिया गया. परन्तु झाँसी की जनता ने सरकार के उस शासनादेश को महत्व नहीं दिया और आज़ाद की माताश्री की मूर्ति स्थापित करने का फैसला कर लिया. साथ ही मूर्ती बनाने का कार्य चंद्रशेखर आजाद के ख़ास सहयोगी कुशल शिल्पकार रूद्र नारायण सिंह जी को सौपा गया. उन्होंने फोटो को देखकर आज़ाद की माताश्री के चेहरे की प्रतिमा तैयार कर दी .

जब हुआ विरोध और लग गया कर्फ्यू –

सरकार को जैसे ही यह पता चला कि आजाद की माँ की मूर्ती बनकर तैयार की जा चुकी है और सदाशिव राव, रूपनारायण, भगवान दास माहौर समेत कई क्रांतिकारी झांसी की जनता के सहयोग से मूर्ती को स्थापित करने जा रहे है तो उसने अमर बलिदानी चंद्रशेखर आज़ाद की माताश्री की मूर्ति स्थापना को देश, समाज और झाँसी की कानून व्यवस्था के लिए खतरा घोषित कर उनकी मूर्ति स्थापना के कार्यक्रम को प्रतिबंधित कर पूरे झाँसी शहर में कर्फ्यू लगा दिया. हर चप्पे चप्पे पर पुलिस तैनात कर दी गई ताकि अमर बलिदानी चंद्रशेखर आज़ाद की माताश्री की मूर्ति की स्थापना ना की जा सके.

आखिर नहीं हो सकी स्थापना –

कर्फ्यू के बाद भी जब जनता का काफिला नहीं रुका तो तिलमिलाई सरकार ने तुरंत ही पुलिस को सदाशिव को गोली मार देने का आदेश दे डाला किन्तु आज़ाद की माताश्री की प्रतिमा को अपने सिर पर रखकर पीठ की तरफ बढ़ रहे सदाशिव को जनता ने चारों तरफ से अपने घेरे में ले लिया था. यह देखते ही पुलिस ने जुलुस पर लाठी चार्ज कर दिया. इस लाठी चार्ज में सैकड़ों लोग घायल हुए तो वही कई लोग अपंग हो गए और कुछ लोगो की मौत भी हुई.(मौत की पुष्टि नहीं है) और आखिरकार चंद्रशेखर आज़ाद की माताजी की मूर्ति स्थापित नहीं हो सकी

कहानी अनसुनी सी है जो कही किताबो में देखने को नहीं मिलती और कही सुनने को भी नहीं. लेकिन बात यह नहीं है. आज हम आज़ाद को दिल से श्रद्धांजलि देते है और मोमबत्तियां जलाकर दुःख व्यक्त करते है. लेकिन एक समय ऐसा भी था जब हम आज़ाद की माताजी की एक मूर्ति के लिए शहीद के देश में 5 फुट जमीन भी न दे सकें.

Share Reality:
WhatsAppFacebookTwitterLinkedIn

One thought on “अनसुनी कहानी- 5 फुट जमीन न दे सकें

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *