हाय रे लाल टमाटर!

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घर की काम वाली बाई ने बताया कि बड़ी मंडी में टमाटर बीस रुपए किलो बिक रहा है तो मुंह में पानी आ गया, क्योंकि पिछले पंद्रह दिनों से सलाद में टमाटर गायब था। मैंने बच्चे से कहा -‘यार टिंकू, गाड़ी निकाल, मंडी से टमाटर लाएंगे।’ वह बोला -‘पापा, टमाटर में गाड़ी क्या करेगी? अपनी स्कूटी ले जाओ और ले आओ टमाटर। कोई गाड़ी भरकर टमाटर थोड़े ही लाना है। एक थैले में आ जाएगा टमाटर।’ मैं बोला -‘तू समझता नहीं, अस्सी रुपए किलो का टमाटर है। मंडी में भीड़-भाड़ रहती है। थैला हाथ से छूट गया या गाय ने सींग मार दिया तो टमाटर खरीदना, नहीं खरीदना बराबर हो जाएगा।’ मन मारकर वह तैयार हो गया। मंडी पहुंचे तो एक सब्जी विक्रेता के पास सड़ा-गला सा टमाटरों का ढेर देखा तो, वही टमाटर सलादी और रसदार लगा। मैंने भाव पूछा तो विक्रेता ने बताया कि टमाटर पचास रुपए लगा देंगे। मैंने मन में सोचा, -चलो तीस रुपए किलो का फायदा है। सब्जी और सलाद के लिए यह बुरा नहीं है। बच्चा मेरी बात समझ गया, बोला -‘क्या ले रहे हैं पापा। ये सड़े हुए टमाटर हैं। बदबू मार रहे हैं, आगे चलो, ताजा टमाटर लेंगे।’ मैंने कहा भी कि यार पचास में बुरे नहीं हैं। वह नहीं माना, हम आगे बढ़े तो टमाटर गायब था। पचासों दुकानों पर उसे तलाशा, लेकिन वह नहीं मिला। मैं बोला -‘टिंकू, मैंने कहा नहीं था, वहीं से ले लो। वही ठीक है। अब पता नहीं वह भी मिलेगा या नहीं?’ थक-हार कर हम दोनों फिर उसी दुकान पर आ गए। टमाटरों को जस का तस देखकर मन को तसल्ली हुई। मैंने कहा -‘भाई पांच किलो तोल दो।’ बच्चा बोला -‘पांच दिन में इससे घर की हालत दुर्गन्ध के कारण बहुत बुरी होगी।

क्योंकि यह पहले ही सड़ा हुआ है। चार-पांच दिनों में तो यह और सड़ जाएगा।’ मैंने कहा -‘अस्सी का पचास में मिल रहा है, गाड़ी लेकर आए हैं। पैट्रोल का खर्चा पांच किलो में ही निकलेगा। नहीं होने से तो काना मामा ही भला होता है।’ यह कहकर मैंने पांच किलो तुलवा कर थैले में भरा और सावधानी से गाड़ी में धर दिया। सीना गर्व से फूला जा रहा था कि आज तो सलाद में टमाटर होगा। सामान्य आदमी के लिए टमाटर सेब की जगह होता है। टमाटर का थैला घर में लाकर रखा तो पत्नी ने नाक बंद कर ली और बोली-‘क्या लाए हो, जिससे दिमाग तक सड़ गया है।’ बच्चे ने ही जवाब दिया-‘सड़ा हुआ टमाटर।’ पत्नी ने थैला खोला तो दुर्गन्ध और फैली और वह बोली-‘इससे तत्काल बाहर कूड़ेदान में डालो, वरना सारा घर बीमार हो जाएगा।’ मैंने कहा भी -‘भागवान यह क्या कर रही हो? पचास रुपए किलो का है। पूरी मंडी छान मारी, एक दुकानदार के यहां ही था। वह ले आया। अब इसे सब्जी में काम ले लो।’

पत्नी गुस्से में भुनभुनायी -‘आप का तो दिमाग सड़ गया है। नाक में घ्राण शक्ति रही नहीं और ले आए यह सड़ा-गला।’ यह कहकर उसने पूरा थैला बाहर कूड़ेदान में उंडेल दिया और राहत की सांस ली और मैंने लम्बी सांस लेकर यही कहा -‘हाय रे मेरे लाल टमाटर।’ टिंकू लगातार हंसे जा रहा था। मैंने कहा -‘अब देखता हूं क्या खाओगे सलाद में?’ उसने कहा -‘हम बिना सलाद के खा लेंगे, लेकिन उफ! आपके इस सड़े टमाटर से तो बचे।’ मैं गुस्से में ऑफिस जाने की तैयारी में जुट गया, बाहर से टमाटरों की गंध अभी भी मेरे नथुनों को राहत दे रही थी।

(स्वतंत्र लेखक)

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