केवल कानून बनाने और दंडित करने से नहीं रुकेगी दरिंदगी

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देश की राजधानी नई दिल्ली में एक दशक पहले ‎निर्भया के साथ सामूहिक दुष्कर्म किया गया था। जिस तरह से उस बालिका के साथ दुष्कर्म और दरिंदगी की गई थी, उससे पूरा देश दहल गया था। आनन-फानन में कई कानून बनाए गए। फांसी देने तक के प्रावधान किए गए। इसके बाद भी दरिंदगी पर रोकथाम नहीं लगी है। उल्टे यह दिनों दिन बढ़ती ही जा रही है।

केवल कानून बना देने और उसमें कड़े दंड के प्रावधान कर देने से महिलाओं और बच्चियों के साथ जो दरिंदगी हो रही है। उसे रोक पाना शायद ही संभव होगा। इसके लिए सरकार, समाज और परिवार को भी सोचना होगा कि यह दरिंदगी कहां से आ रही हैं। भोली-भाली बच्चियों के साथ लोग इतने अत्याचार कैसे कर लेते हैं। पिछले वर्षों में छोटी-छोटी सी बच्चियों के साथ जिस तरह से दरिंदगी की गई है, उससे भारत की सामाजिक व्यवस्था की सोच उजागर हो रही है।

घटनाओं को रोकने के ‎लिये कानून बनाए गए थे। निर्भया फंड की स्थापना की गई थी। बड़े-बड़े दावे किए थे। कड़े कानून से अपराध करने वालों के साथ कड़ाई से निपटा जाएगा। यौन अपराधों पर नियंत्रण होगा। पिछले 11 वर्षों के परिणामों पर नजर डालें, तो यौन अपराध और दरिंदगी कम होने के स्थान पर बढ़ती ही जा रही है। यह कैसे कम होगी, हम कानून बनाकर भूल गए हैं कि इससे अपराध पर नियंत्रण हुआ है या नहीं। अपराध बढ़ने के कौन कौन से कारण हैं। उन कारणों को दूर करने की दिशा में शासन, प्रशासन और सामाजिक स्तर पर कोई प्रयास किए गए हैं या नहीं।

सोशल मीडिया और इंटरनेट इस तरह की अपराधिक घटनाओं के लिए सबसे ज्यादा जिम्मेदार माने जा रहे हैं। आज अधिकांश लोगों के पास स्मार्टफोन है। स्कूल में बच्चों को स्मार्टफोन ले जाना और स्मार्टफोन के माध्यम से पढ़ाई करना आवश्यक हो गया है। इंटरनेट पर अश्लील वेबसाइट की भरमार मची हुई है। गूगल, यूट्यूब और अन्य ऐप के माध्यम से बच्चों और समाज के सभी वर्ग को आसानी के साथ पोर्न वी‎डियो का शिकार बनाया जा रहा है। बहुत कम उम्र में यौन संबंध के हजारों मामले सामने आ चुके हैं। एकल परिवार के कारण बच्चे अपना अधिकांश समय स्मार्टफोन में बिताते हैं।

समाज के सभी उम्र के लोगों में इंटरनेट के कारण अश्लील वेबसाइट इत्यादि चाहे और अनचाहे रूप में देखने को ‎मिलती है। धीरे-धीरे इसका नशा इस तरह से चढ़ जाता है, ‎कि मन और मस्तिष्क कुंठित होकर रह जाता है। ऐसी कुंठित समाज में इस तरह के अपराधों पर नियंत्रण कानून और दंड से कर पाना शायद ही संभव होगा। यदि दरिंदगी पर वास्तविक तौर पर नियंत्रण करना है, तो समाज में नैतिक शिक्षा, पारिवारिक जिम्मेदारी, इंटरनेट पर क्या उपलब्ध होगा, इसके लिए सरकार की जिम्मेदारी तय की जानी जरूरी है।

सरकार के मुखिया और जांच अधिकारी इंटरनेट पर जाकर देखें ‎कि अश्लील सामग्री बड़ी मात्रा में सभी वर्ग को उपलब्ध है। गूगल के सर्च इंजन, यूट्यूब के सर्च इंजन के माध्यम से जिस तरह की मानसिकता भारतीय समाज की पैदा की जा रही है, वही यौन अपराधों को बढ़ाने में सबसे बड़ी भूमिका अदा करती हुई नजर आ रही है। सरकार और महिला संगठन यदि सोचते हैं कि दरिंदगी और यौन अपराधों को कानून बनाकर अथवा दंडित करके इस समस्या से ‎निपटा जा सकता है, तो यह बेमानी है। यदि ऐसा होता तो अभी तक यौन अपराधों पर नियंत्रण पा लिया गया होता।

नियंत्रण की बात तो दूर, यौन अपराध और द‎रिंदगी बढ़ती जा रही हैं। कड़े कानूनों के कारण यौन अपराध करने वाले लोग दरिंदगी करते हैं। सबूत को मिटाने के लिए महिलाओं और बच्चियों को मार डालने तक का कुकृत्य करते हैं। बच्चियों और महिलाओं के साथ यौन उत्पीड़न के साथ उनकी जान भी जा रही है। ‎पिछले वर्षों में एक तरफा कानून बनाए गए हैं। उसके बाद कानूनों का दुरुपयोग भी बड़े पैमाने पर होने लगा है।

सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट भी सरकार का ध्यान आकर्षित कर चुकी है। जो विशेष कानून विशेष वर्ग को संरक्षण देते हैं, उनका बड़े पैमाने में भारत में दुरुपयोग होने लगता है। महिलाएं अब बलात्कार के आरोप कई वर्षों तक यौन संबंधों में रहने के बाद यौन अपराध दर्ज कराती हैं। लोगों को ब्लैकमेल किया जा रहा है। इस तरह के अपराधों की बाढ़ सारे देश में देखने को मिल रही है। कानून और नियम जो भी बनाए जाए, वह सभी वर्गों के हितों को ध्यान में रखते हुए बनाए जाएं। यदि कोई अपराध करता हुआ पाया जाता है, तो उसे उस अपराध की कड़ी से कड़ी सजा मिलनी ही चाहिए।

लेकिन कानून की आड़ में सुनियोजित अपराधिक घटनाएं बढ़ने लगती हैं। तो इस तरह नियम और कानून बनाने से सरकार को बचना भी चाहिए। सामाजिक स्तर पर भी म‎हिलाओं तथा योन अपराधों को रोकने के लिए समग्र चिंतन किए जाने की जरूरत है। स्मार्ट फोन ने 12 से 14 वर्ष की उम्र में बच्चे बालिग होने लगे हैं। को-एजुकेशन के कारण लड़के और लड़कियां एक साथ रहने और ज्यादा से ज्यादा एकांत मिलने लगा है। परिवार बहुत छोटे हो गए हैं। कम उम्र के बच्चों में भी आम सहमति से यौन संबंध बन जाते हैं।

हम हर मामले में यूरोपीय देशों की नकल करने के लिए तैयार बैठे हैं। यौन संबंधों को लेकर अभी भी हम पश्चिमी सभ्यता के स्थान पर दशकों पुरानी भारतीय मानसिकता के आधार पर सोचते हैं, यह गलत है। वर्तमान संदर्भ में पाश्चात्य संस्कृति में जिस तरह से यौन संबंधों को लेकर नियम-कायदे कानून बने हुए हैं। हमें उनसे भी सीख लेने की जरूरत है। तभी जाकर इस तरह की द‎रिंदगी पर ‎नियंत्रण पाया जा सकेगा। कड़े कानून और दंड से अपराध ‎नियं‎त्रित नहीं होते हैं।

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