Election 2024 -प्रदेश में लोकसभा चुनाव संपन्न : कम मतदान निराशाजनक

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Uttar Pradesh has voted lesser than yester years. This may affect the end results of lower house elections.

सोमवार को आठ लोकसभा क्षेत्र में चुनाव संपन्न होने के साथ ही प्रदेश की सभी 29 सीटों पर लोकसभा के चुनाव हो चुके हैं अब 4 जून को पता चलेगा कि भाजपा के सभी 29 सीटों को जितने के टारगेट हासिल कर पाती है या कांग्रेस कितनी सीटें जीतती है हालांकि खजुराहो लोकसभा सीट और इंदौर लोकसभा सीट पर भाजपा को बाकोबर जैसी स्थिति रही जहां कांग्रेस चुनाव मैदान में नहीं थी।

दरअसल, प्रदेश में चार चरणों में लोकसभा के चुनाव हुए हर चरण अपनी अलग विशेषता लिए हुए था हर चरण में अलग-अलग मुद्दे भी गर्माये रहे भाजपा और कांग्रेस के राष्ट्रीय नेताओं ने भी प्रदेश में आकर जनसभाएं की प्रादेशिक नेताओं ने भी जमकर चुनाव प्रचार किया इसके बावजूद 2019 के लोकसभा चुनाव की तरह मतदान प्रतिशत नहीं आ पाया लगभग प्रत्येक चरण में मतदान प्रतिशत कम रहा प्रथम और दूसरे चरण में कम मतदान प्रतिशत के बाद राजनीतिक दल प्रशासन और चुनाव आयोग सक्रिय हुआ और उसके बाद तीसरे और चौथे चरण में मतदान प्रतिशत बढ़ाने की कोशिश कामयाब रही लेकिन इंदौर जैसे महानगर में जो जागरूकता के लिए जाना जाता है पूरे देश में लगातार सात बार स्वच्छता में प्रथम स्थान पर आ रहा हैI

इसके बावजूद खबर लिखे जाने तक लगभग 52% मतदान की जानकारी आई है इंदौर में कांग्रेस के घोषित प्रत्याशी अक्षय क्रांति बम में नामांकन पत्र वापस लेने के आखिरी दिन नामांकन पत्र वापस लिया और भाजपा में शामिल हो गए इसके बाद इंदौर में दुविधा की स्थिति बनी जो मतदान के आखिरी समय तक बनी रही हालांकि कांग्रेस पार्टी ने खुलकर नोटा के पक्ष में मतदान करने की अपील की एक तरह से प्रचार किया कोई दूसरी ओर भाजपा ने नोटा को वोट न देने के लिए पूरी जागरूकता जनता के बीच बढ़ाने की कोशिश की लेकिन मतदान प्रतिशत इन सब के बाद भी नहीं बढ़ पाया भाजपा का दावा है कि इंदौर भाजपा बड़े अंतर से जीत करेगी क्योंकि कांग्रेस मैदान में ही नहीं थी और लोग नोटा को वोट क्यों देते जबकि कांग्रेस में कब मतदान को मतदाताओं की सत्ताधारी दल से नाराजगी बताया।

बहरहाल आठ लोकसभा क्षेत्र में शाम तक लगभग 68 प्रतिशत मतदान होने की खबर है सबसे ज्यादा रतलाम लोकसभा सीट की सैलाना विधानसभा सीट पर 82% मतदान हुआ है मुख्यमंत्री डॉ मोहन यादव के गृह क्षेत्र उज्जैन में शुरुआत में धीमा मतदान हुआ लेकिन शाम तक 70% से भी ज्यादा मतदान हो गया देवास में 71% धार में 67% खंडवा में 68% खरगोन में 70% मंदसौर में 71% रतलाम में 70% और इंदौर में 56% से भी ज्यादा मतदान हुआ।

मालवा का इलाका भाजपा का परंपरागत गढ माना जाता है इस कारण भाजपा को जीत की पूरी उम्मीद है लेकिन आरक्षित वर्ग की सीटों पर जिस तरह से कांग्रेस ने चुनौती पेश की है उसके कारण धार रतलाम और खरगोन में कांटे की टक्कर मानी जा रही है इंदौर सीट पर भाजपा दिन भर बढत बनने के लिए कसरत करती रही शुरुआती दौर में इंदौर में कम मतदान की खबरें थी उसके बाद भाजपा नेता सक्रिय हुए लेकिन आखिरी समय में मौसम की खराबी के कारण भी मतदान प्रभावित हुआ और केवल मतदान 52% के आसपास ही हो पाया है।

कुल मिलाकर देर शाम तक और मतदान प्रतिशत बढ़ाने की संभावना है लेकिन आठो सीटों पर औसत 70% मतदान होने की संभावना है दोनों ही दलों के अपने-अपने दावे हैं लेकिन जनता ने किसकी पक्ष में मतदान किया है यह तो 4 जून को ही पता चलेगा लेकिन प्रदेश में लोकसभा के चुनाव सभी 29 सीटों पर संपन्न हो चुके हैं जबकि देश में एक जून तक मतदान होना है।

निराशाजनक है कम मतदान होना

भारत लोकतांत्रिक या प्रजातांत्रिक व्यवस्था का देश है। यह देश विश्व की महान लोकतंत्रात्मक प्रणालियों में से एक है। लोकतंत्र का आशय ही लोगों की बनाई गई एक व्यवस्था या प्रणाली है जिसके सिद्धान्तों के आधार पर यह स्वत: ही कार्य करती है। इस प्रणाली का संचालन लोगों द्वारा ही होता है। लोकतंत्र में लोगों की आशाओं, आकांक्षाओं, अपेक्षाओं तथा आवश्यकताओं के अनुरूप ही कार्य होता है। इस व्यवस्था में लोगों की भूमिका बहुत महत्वपूर्ण होती है क्योंकि यह व्यवस्था लोगों की, लोगों के लिए तथा लोगों के द्वारा ही संचालित होती है। लोकतंत्र या प्रजातन्त्र निर्वाचन या चुनाव से मजबूत होता है। चुनाव निष्पक्ष, निर्भीक, बिना डर, भय एवं स्वेच्छा से होता है। चुने हुए प्रतिनिधि लोगों के सेवक बनकर बिना पक्षपात तथा भेदभाव से जनभावनाओं के अनुरूप कार्य करते हैं। लोकतंत्र या प्रजातन्त्र एक ऐसी शासन प्रणाली है जिसके अन्तर्गत जनता अपनी स्वेच्छा से निर्वाचन प्रक्रिया में आए हुए किसी भी मनपसंद उम्मीदवार को मत देकर अपना प्रतिनिधि चुनती है। यानी लोकतन्त्र शासन का एक ऐसा रूप जिसमें शासकों का चुनाव जनता करती है। एक ऐसी व्यवस्था जिसके अनुसार जनता का चुना हुआ प्रतिनिधि शासक या सेवक बनकर राज्य में जनता की सेवा करता है। लोकतंत्र शासकीय प्रणाली का एक बहुत सुन्दर रूप है। भारत में 26 जनवरी, 1950 को संविधान लागू हुआ।

भारतीय संविधान के अनुच्छेद 326 के अनुसार कोई भी भारतीय व्यक्ति यदि वह 18 वर्ष की आयु पूर्ण करता हो, वह इस प्रणाली के लिए बिना डर या भय तथा अपनी स्वेच्छा से अपने मताधिकार का प्रयोग कर सकता है। यह उसका संवैधानिक अधिकार है। लोकतंत्र की नींव ही वोट के अधिकार पर टिकी है। इसलिए संवैधानिक दृष्टि से यह किसी भी भारतीय नागरिक का वह अधिकार है जो लोकतन्त्र को सशक्त बनाने का कार्य करता है। विडम्बना है कि भारतीय संविधान लागू होने के 75 वर्षों के बाद भी हम इसका महत्व तथा उपयोगिता नहीं समझ पाए हैं। आज भी लोग मतदान करने में अनिच्छा तथा उदासीनता दिखाते हैं। प्रत्येक चुनाव में कर्मचारियों, अधिकारियों, गैर सरकारी तथा अद्र्धसरकारी संस्थानों में काम करने वाले दिहाड़ीदार मजदूरों को वोट डालने के लिए वेतन सहित छुट्टी का प्रावधान रहता है, लेकिन उसके बावजूद लोग अपने मताधिकार का प्रयोग करने में रुचि नहीं दिखाते। इसके बहुत से कारण हैं जिनमें अशिक्षित होना, लोकतांत्रिक मूल्यों में विश्वास नहीं रखना या संवैधानिक कर्तव्यों की अनदेखी करना है। यह देश अपने नागरिकों को सब कुछ प्रदान करता है। शिक्षा, सेवा, सडक़, स्वास्थ्य, सुरक्षा, रोजगार, बिजली, पानी, जीविकोपार्जन के सभी संसाधन तथा सिर उठाकर जीने की स्वतन्त्रता यह राष्ट्र प्रदान करता है। यह देश संविधान के अनुसार संचालित है।

यही लोकतंत्रिक प्रणाली को मजबूती प्रदान करता है। अफसोस है कि हम वोट डालने के संवैधानिक अधिकार का पालन ही नहीं करते। आज भी सरकारों को अधिक मतदान करने के लिए लोगों को शिक्षित एवं जागरूक करने के उद्देश्य से अभियान चलाने पड़ते हैं। आज भी वोट डलवाने के लिए लोगों से निवेदन तथा आग्रह करना पड़ता है। हमें यह समझना चाहिए कि लोकतन्त्र में जहां वोट डालना हमारा अधिकार है, वहीं यह हमारा संवैधानिक कर्तव्य भी है। 18वीं लोकसभा के गठन के लिए चुनाव प्रतिशत को बढ़ाने की भारतीय चुनाव आयोग की कोशिशों के बावजूद अभी तक सम्पन्न हुए तीन लोकसभा चुनाव चरणों में यह आंकड़ा निराशाजनक ही रहा है। चुनाव आयोग द्वारा जारी किए गए इन आंकड़ों के प्रथम चरण में 66.14 प्रतिशत, द्वितीय चरण में 66.71 प्रतिशत तथा तृतीय चरण में 65.68 प्रतिशत मतदान दर्ज किया गया, जो कि वर्ष 2019 की तुलना में बहुत कम है। वर्तमान में चुनाव आयोग द्वारा वोट प्रतिशत बढ़ाने के लिए बहुत से अभियान चलाए जा रहे हैं। पाठशालाओं, महाविद्यालयों तथा विश्वविद्यालयों में रैलियों, भाषणों तथा अनेक प्रकार की गतिविधियों के माध्यम से लोगों को वोट डालने के लिए प्रेरित किया जा रहा है। पूरे देश में ‘स्वीप’ यानी ‘सिस्टेमेटिक वोटर्स एजुकेशन एंड इलैक्टोरल पार्टिसिपेशन’ कार्यक्रम के माध्यम से जन जागरण हो रहा है।

इसके बावजूद कम संख्या में मतदान होना निराशाजनक है। अधिकार एवं कर्तव्य एक दूसरे के पूरक हैं। हम स्वतंत्र भारत में अपने अधिकारों का दावा तो करते हैं, परन्तु अपने कर्तव्यों के लिए जागरूक नहीं। जो राष्ट्र हमें सम्मान के साथ जीने के लिए सभी संसाधन प्रदान करता है, उसकी नींव को मजबूती के लिए हम मतदान करने का कर्तव्य नहीं निभा सकते? यह बहुत ही चिंताजनक, शर्मनाक तथा दुर्भाग्यपूर्ण है। यदि कोई नागरिक व्यवस्था से नाखुश है या उम्मीदवारों को पसंद नहीं करता तो भी ‘नोटा’ का प्रावधान है, लेकिन वोट न डालना किसी समस्या का समाधान नहीं है। बिजली, पानी, सडक़, शिक्षा, स्वास्थ्य, सुरक्षा, रोजगार के लिए हम लम्बे समय तक कार्यालयों के चक्कर लगा सकते हैं, लेकिन मतदान के संवैधानिक कर्तव्य का उपयोग करने के लिए हम मतदान केंद्र पर नहीं जा सकते? जहां आधार कार्ड, हैल्थ कार्ड, किसान कार्ड, रोजगार कार्ड तथा राशन कार्ड से प्रत्येक नागरिक का अधिकार निश्चित होता है, वहीं पर आज आवश्यक है कि मतदान कार्ड का उपयोग भी सुनिश्चित हो। मतदान के कर्तव्य को हर हाल में अनिवार्य बनाया जाना समय की मांग है।

मतदान करने के उपरान्त ही कोई नागरिक अपने अधिकारों के लिए दावा करने का पात्र हो, यह बहुत आवश्यक है, अन्यथा लोकतन्त्र मजाक बन कर रह जाएगा। लोकतंत्र की मजबूती के लिए वोट से चोट करना आवश्यक है। हम सभी अपने वोट के अधिकार का मूल्य समझकर चुनावी यज्ञ में अपनी आहुति दें, इसी में ही लोकतन्त्र की विजय है। एक जिम्मेदार भारतीय नागरिक बन कर अपने मताधिकार का प्रयोग कर गौरवान्वित महसूस करें। तभी अगले चरणों में मतदान प्रतिशत बढ़ पाएगा।

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