Exclusive – “मोदी-शाह” चुनाव-शैली के जादूगर

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पांच राज्यों के चुनाव परिणाम : नतीजों के निहितार्थ

कभी जादूगर का खेल देखा है? राजस्थान के पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत जादूगर के बेटे हैं, लेकिन जादू दिखा कोई दूसरा रहा है। पांच राज्यों में हुआ चुनाव ऐसी जादूगरी का नमूना है। अब जब चुनावी धूल बैठ चुकी है, घायल अपने घावों की साज-संभाल में लगे हैं, विजेता अपनी जीती कुर्सियां झाड़-पोंछ रहे हैं, हम जादू के पीछे का हाल देखने-समझने की कोशिश करें। Modi Shah’s Magical diplomacy style is unbeatable and making it impossible for opponents to face it. Gehlot fall flat being over confident. This is New Age politics that Bharat/ India needs.

मोदी-शाह ने जिस नई चुनावी-शैली की नींव 2014 से डाली है उसकी विशेषता यह है कि न उसका आदि है, न अंत! यह सतत चलती है। चुनाव की तारीख घोषित होने पर चुनावी-मुद्रा में आना, चुनाव की तारीख तक चुनाव लड़ना और फिर जीत-हार के मुताबिक अपना-अपना काम करना-ऐसी आरामवाली राजनीति का अभ्यस्त रहा है यह देश, इसके राजनीतिक दल! मोदी-शाह मार्का राजनीति इसके ठीक विपरीत चलती है। वह तारीखें देखकर नहीं चलती, नई तारीख़ें गढ़ती है। चुनावी सफलता की तराजू पर तौलकर वह अपना हर काम करती है।

उनके लिए चुनाव वसंत नहीं है कि जिसका एक मौसम आता है; यह बारहमासी झड़ी है। उनके लिए विदेश-नीति भी चुनाव है, यूक्रेन-फिलीस्तीन-गजा-इजरायल भी और पाकिस्तान भी चुनाव है; जी-20 भी चुनाव है; खेल व खिलाड़ी भी चुनाव हैं; चंद्रयान भी चुनाव है; सरकारी तंत्र व धन भी चुनाव के लिए है। उनके लिए जनता भी एक नहीं, कई हैं जिनका अलग-अलग चुनावी इस्तेमाल है।

मार्च 2018 में प्रधानमंत्री ने जनता का एक नया वर्ग पैदा किया था : विकास के लिए प्रतिबद्ध जिले! 112 जिलों की सूची बनी। ये जिले ऐसे थे जिनके विकास की तरफ कभी विशेष ध्यान नहीं दिया गया था। जो बड़े राजनीतिक पहलवान हैं वे अपने व अपने आसपास के चुनाव क्षेत्रों के लिए सारे संसाधन बटोरने में मग्न रहते हैं। नये चुनाव क्षेत्रों का सर्जन किसी के ध्यान में भी नहीं आता। मोदीजी ने अपनी रणनीति में इसे शामिल किया और 112 जिलों की सूची बना दी।

किसी ने नहीं समझा कि यह चुनाव की नई कांस्टीट्यूएंसी तैयार करने की योजना है। इन जिलों में से 26 जिले ऐसे थे जो मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़, राजस्थान तथा तेलंगाना के 81 चुनाव-क्षेत्रों में फैले थे। ये सभी अधिकांशत: आदिवासी व अन्य पिछड़े समुदायों के इलाके थे। पहली बार इन इलाक़ों को लगा कि कोई है जो इनका अस्तित्व मानता ही नहीं, बल्कि उन्हें आगे भी लाना चाहता है।

यहां विकास की क्या कोशिशें हुईं उनकी समीक्षा का यह मौका नहीं है। मौका है यह समझने का कि इन 81 चुनाव क्षेत्रों में भाजपा ने इस बार कांग्रेस को कड़ी टक्कर लगाई। 2018 में जहां इन क्षेत्रों में भाजपा ने बमुश्किल 23 सीटें जीतीं थीं, 2023 में उसने यहां 52 सीटें जीती हैं- पिछले के मुकाबले दोगुने से ज्यादा। यह अपने लिए नये चुनावी आधार गढ़ने की योजना का एक हिस्सा था। ‘स्मार्ट सिटी योजना, ‘ अलग-अलग समूहों को नकद सहायता की लगातार घोषणा आदि सब चुनाव के नये कारक हैं जिनके जनक मोदीजी हैं।

इस बार पांच राज्यों के चुनाव को 2024 के बड़े चुनाव का पूर्वाभ्यास करार दिया गया था। कांग्रेस ने हिसाब लगाया कि कहां-कहां ‘लंबी सत्ता का जहर’ भाजपा को मार सकता है, कहां-कहां हमारी सरकार का ‘अच्छा काम’ हमें फायदा दे सकता है। कांग्रेस की नजर इस पर भी थी कि चुनाव का परिणाम ऐसा ही होना चाहिए कि ‘इंडिया’ में डंडा हमारे हाथ में रहे। यह गणित बुरा भी था, अपर्याप्त भी।

जब एक जादूगर अपने हैट से नये-नये खरगोश निकालकर दिखा रहा हो तब मजमा उस नट को कैसे देखता रह सकता है जिसे तनी हुई रस्सी पर संतुलन साधने का एक ही खेल आता है? और वह भी ऐसा कि संतुलन बार-बार डगमगाता भी रहता है! कांग्रेस राष्ट्रीय दल है तो सही, लेकिन उसके पास राष्ट्रीय सत्ता नहीं है; जो सत्ता है उसे भी वह संभाल नहीं पा रही है। उसके पास राष्ट्रीय पहचान व कद का एक ही नेता है जिसका नाम है-राहुल गांधी!

राहुल गांधी की जानी-अनजानी बहुत सारी विशेषताएं होंगी, लेकिन देश जो देख पा रहा है वह यह है कि वे अब तक राजनीतिक भाषा का ककहरा भी नहीं सीख पाए हैं; उनके पास वह राजनीतिक नजर भी नहीं है जो चुनावी विमर्श के मुद्दे खोज लाती है। कांग्रेस में दूसरा कोई पंचायत स्तर का नेता भी नहीं है। कांग्रेस के पास उसका कोई शाह, कोई योगी, कोई शिवराज, कोई हेमंता नहीं है; वह किसी को बनने भी नहीं देती।

दूसरी तरफ भाजपा है। उसके पास भी एक ही ‘राहुल’ है-नरेंद्र मोदी! उनके पास हर मौसम की भाषा है, गिद्ध-सी वह राजनीतिक नजर है जो हर मुद्दे को अपने हित में इस्तेमाल करने की चातुरी रखती है। उनका कद इतना बड़ा ‘बनाया’ गया है कि उसे कोई छू नहीं सकता। फिर नीचे कई नेता है जिनका अपना आभा मंडल है। इन सबके साथ है, एक परिपूर्ण प्रचार-तंत्र, एक परिपूर्ण धन-तंत्र तथा एक परिपूर्ण मीडिया-तंत्र। कांग्रेस का सबसे बड़ा नेता कांग्रेसियों की नजर में भी पर्याप्त नहीं है; भाजपा का नेता भाजपाइयों की नजर में राजनीतिक नेता ही नहीं, अवतार भी है। दोनों का मुकाबला बहुत बेमेल हो जाता है।

Supporters of India’s ruling Bharatiya Janata Party (BJP) shout slogans as they celebrate after learning of the initial poll results of Gujarat state assembly election in Gandhinagar, India, December 8, 2022. REUTERS/Amit Dave

‘इंडिया’ के घटक जानते हैं कि कांग्रेस के कारण ही वे ‘इंडिया’ हैं, लेकिन वे जो जानते हैं, वह मानते नहीं हैं। इसलिए कोई बंगाल को तो कोई उत्तरप्रदेश को तो कोई तमिलनाडु को तो कोई ‘बिहार’ को ‘इंडिया’ मानकर चलता है। इस तरह सब बिखरी मानसिकता से एक होने की कोशिश करते हैं। यह असंभव की हद तक कठिन काम है। 2014 से लेकर अब तक भाजपा की रणनीति यह रही है कि वह अपना राजनीतिक आधार बनाने व बढ़ाने के लिए वक्ती नफा-नुकसान का हिसाब नहीं करती।

राजनीति संभव संभावनाओं का खेल है। 2023 फिर से बताता है कि संभव संभावनाओं में असंभव संभावना छिपी होती है। भाजपा वैसी संभावनाओं को पकड़ने की हर संभव कोशिश कर, असंभव को साधती आ रही है। दूसरे संभव को असंभव बनाने के खेल से बाहर ही नहीं आ पाते। क्या 2024 इसी कहानी को दोहराएगा? देखना है कि कौन नये खरगोश बना व दिखा पाता है।

-कुमार प्रशांत- (लेखक गांधी शांति प्रतिष्ठान के अध्यक्ष हैं)

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