Special Report on Ganesh Chaturthi 2024. here is an exclusive detailed feature on Tansen written Shri Ganesh Stuti and recitals. गणेश चतुर्थी (07 सितंबर) पर विशेष: तानसेन की लेखनी और वाणी में गणेश वंदना
मुगल काल में तानसेन श्रेष्ठ गायक ही नहीं वरन् कालजयी रचनाकार भी थे। उनके पदों का शताब्दियों से मन्दिरों में तन्मयता और भक्तिभाव से विभिन्न रागों में गायन होता है। वस्तुत: पदों की रचना कर, संगीत विद्या में राग-रागनियों की माला में पुरोकर तानसेन ने भारतीय संस्कृति में सगुण भक्त के रूप में विभिन्न देवी-देवताओं की वंदना को लेखनी तथा गायन में प्रस्तुत किया है। सर्वप्रथम उनकी विध्न विनाशक श्री गणेश जी की वंदना की पंक्तियों का अवलोकन करें। तानसेन ने भक्ति भावना की जीवंतता भरकर मन को झंकृत करने वाली पंक्तियों में गणेश जी की स्तुति वंदना प्रस्तुत की है।
गणेश जी विध्न-कारी देवता माने जाते थे। धीरे-धीरे वे विध्न नाशक कल्याणकारी देवता बना दिये गये। गायकों के गणेश सदा आराध्य रहे हैं। उनकी स्तुति में तानसेन ने अनेक पद लिखे हैं।
उठि प्रभात सुमिरियैं, जै श्री गणेश देवा। माता जाकी पारवती,पिता महादेवा।। एकदंत दयांवत, चार भुजाधारी। मस्तक सिंदूर सौहै मूसक असवारी॥ फूल चढ़े पान चढ़ै और चढ़ै मेवा। मोदक कौ भोग लगै, सुफल तेरी सेवा॥ रिद्घि देत, सिद्घि देत, बुद्घि देत भारी,। ”तानसेन गजानंद सुमिरौ नर-नारी’ (राग भैरव, ध्रुपद चौताला)
पचास-साठ वर्ष पहले से इस पद को लोग बड़े भक्ति-भाव से गाते थे। तथापि अंतिम चरण नहीं गाया जाता। इस कारण यह ज्ञात नहीं हो पाया कि यह पद तानसेन का है। लगभग इसी भाव की एक गणेश-वंदना और है-
जै गनेस जै गनेस जै गनेस देवा। मन बुधि हित चित लगाइ करौ नित्त सेवा॥ एकदंत दयावंत चारि भुजाधारी। मस्तक सिंदूर सोहै मूसे असवारी॥ माता वाकी गवरि कहीजै पिता महादेवा। तीनि लोक ध्यान धरत नित्त करत सेवा॥ अंधनि कौ नैन देत कुस्टनि कौ काया। बाँझनि कौ पुत्र देत निर्धन कौ माया॥ भालचंद्र सिव विलोकि देव सकल बारी। ”तानसेन’गजानंद गावै सुभकारी॥ ( ”पं. हरिहरनिवास द्विवेदी कृत तानसेन से’’) (राग भैरव, इकताला)
गणेश के अनेक नामों की माला गूंथ कर तानसेन ने उनके गले में पहना दी है- (राग भैरव, इकताला)
लंबोदर, गज-आनन, गिरिजा-सुत गनेस, एकरदन प्रसन्नवदन अरून-भेस। नर-नारी,गुनी-गंधर्व, किन्नर-यक्ष-तुंबरू मिलि ब्रह्म विष्णु आरति पुजावत महेस॥ अष्ट-सिद्घि, नव-निधि, मूषक-वाहन विद्यापति, तोहि सुमिरत जिनको सेस। ”तानसेन’’ के प्रभु तुम ही कूँ ध्यावै अविर्धन रूप, विनायक रूप स्वरूप आदेस॥ गणेश के कुछ नाम शेष रह गय थे, वे इस पद में पूरे किए गए- (रागिनी टोड़ी, चौताला)
एकदंत, गजबदन, विनायक, विधन-बिनासन हैं सुखदाई। लंबोदर, गजानन, जगवंदन, शिवसुत, ढुंढीराज सब बरदाई॥ गौरी-सुत, गणेश, मूसक-वाहन, फरसाधर, शंकर-सुवन, रिद्घि-सिद्घि नव निधि दाई।
अंतत: महागणेश के रूप में तानसेन ने इस सेवा भावना से याचना करते हुए प्रार्थना की है- महागनेस कहत सुख-चैन। भेंटत हू न छाँडे अभावै, साह किरपा मागै, भागै बिचकै न॥ नाम लेत कटत पाप, अन-धन लच्छिमी देन। ”तानसेन’’ सेवक पै कृपा करौ ज्यौ कल्पवृक्ष कामधेन॥
लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक ने ”गणेश उत्सव महोत्सव’’ का शुभारम्भ कर के इसे राष्ट्रीय आंदोलन से सम्बद्घ कर दिया था। उसमें भी तानसेन के पदों का सुमधुर गायन होता है।
श्रीगणेश का जन्म और महाभारत लेखन चतुर्थी की देन!
भगवान श्रीगणेश का जन्म भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि को बुधवार के दिन हुआ था।तभी से हर साल भाद्रपद शुक्ल चतुर्थी तिथि को गणेश चतुर्थी या फिर गणेश जयंती मनाते हैं। महाराष्ट्र समेत पूरे भारत में गणेश चतुर्थी से 10 दिनों का गणेश उत्सव प्रारंभ होता है, इसका समापन अनंत चतुर्दशी यानी भाद्रपद शुक्ल चतुर्दशी तिथि को होता है। गणेश चतुर्थी के दिन लोग अपने घरों पर गणपति स्थापना करके पूजन करते हैं।
भाद्रपद शुक्ल चतुर्थी तिथि 6 सितंबर को दोपहर में 03:01 बजे से लेकर 7 सितंबर को शाम 05:37 बजे तक रहेगी।7 सितंबर को गणेश चतुर्थी में सूर्योदय सुबह 06:02 बजे होगा। ऐसे में उदयातिथि के आधार पर गणेश चतुर्थी 7 सितंबर को मनाई जा रही है।इस दिन व्रत रखा जाएगा और गणपति की स्थापना की जाएगी।मूर्ति स्थापना और गणेश पूजा के लिए ढाई घंटे से अधिक का समय मुहर्त के अनुसार उपलब्ध है। 7 सितंबर को गणेश चतुर्थी की पूजा का मुहूर्त 11:03 बजे से दोपहर 01:34 बजे तक है।
इस साल गणेश चतुर्थी की पूजा रवि और ब्रह्म योग में होगी। चतुर्थी के दिन रवि योग सुबह 06:02 बजे से दोपहर 12:34 बजे तक है, वहीं ब्रह्म योग सुबह से लेकर रात 11:17 बजे तक है।यह भाद्रपद की विनायक चतुर्थी है। इस दिन चंद्रमा का दर्शन नहीं करना चाहिए। यदि ऐसा करते हैं तो झूठा कलंक लग सकता है।इस दिन चन्द्रमा देखने के कारण ही भगवान श्रीकृष्ण पर मणि चोरी करने का झूठा आरोप लगा था।भगवान गणेश शुभ और समृद्धि के देवता है। सब देवों में सबसे पहले गणेश जी की पूजा की जाती है। भक्तों के कष्टों का निवारण करने वाले गणपति महाराज भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को धरती पर आते हैं और दस दिन के लिए निवास करते हैं। जिस दिन गणपति आते हैं, उस दिन गणेश चतुर्थी का त्यौहार धूमधाम से मनाया जाता है।
लोग घरों, पंडालों और मंदिरों में धूमधाम से गणपति बप्पा की मूर्ति स्थापित करते हैं और दस दिन तक विधि विधान से गणपति की पूजा की जाती है।इसके बाद अनंत चौदस के दिन गणपति को धूमधाम से विसर्जित किया जाता है।गणेश चतुर्थी पर ब्रह्म योग, रवि योग और ऐंद्र योग भी बन रहा है। कहा जाता है कि ये सभी योग पूजा की दृष्टि से बेहद शुभ हैं। इस योग में की गई पूजा और खरीदारी दुगना फल देती है।पौराणिक कहानियों के अनुसार महर्षि वेद व्यास के कहने पर भाद्रपद मास की चतुर्थी को गणेशजी ने महाभारत का लेखन कार्य शुरू किया था। तब महर्षि वेद व्यास ने गणेश जी को महाभारत की कहानी सुनाते रहे और गणेश जी अपनी कलम से महाभारत को लिपिबद्ध करते रहे।
माना जाता है कि महाभारत लेखन में 10 दिनों का समय लगा था। 10 दिनों तक गणेश जी एक ही मुद्रा में बैठे रहे , जिससे उनका शरीर जड़वत होने के साथ शरीर पर धूल-मिट्टी की चढ़ गई थी। इस कारण गणेश जी 10 दिनों बाद नदी पर स्नान करने गए थे, उस दिन को अंनत चतुदर्शी नाम से जाना जाता है। किसी भी मांगलिक कार्य में गणेश जी को प्रथम देवता या प्रथम निमंत्रण देवता के रूप में भी पूजा जाता है, इसलिए गणेश चतुर्थी का दिन गणेश जी की स्तुति में विशेष माना जाता है। पौराणिक मान्यता है कि जिन लोगों के काम अधूरे रह जाते हैं या काम-धंधे में तरक्की नहीं मिल पाती, उन्हें गणेश चतुर्थी पर भगवान गणेश की प्रतिमा को घर पर जरूर लाना चाहिए।जिसे शुभ माना गया है।