भगवान शिव को कौन सा फूल चढ़ाने पर क्या फल प्राप्त होगा

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भगवान शिव को कमल पुष्प चढ़ाने से शान्ति व धन की प्राप्ति होती है

श्रावण मास में देवों के देव महादेव अर्थात भगवान शिव की पूजा की जाती है

शिव की पूजा में फूलों का विशेष महत्व है

ऐसा कहा जाता है कि एक तपस्या में लीन सर्वगुणों से सम्पन्न और 

चारों वेदों में निष्णात किसी ब्राह्मण को सौ स्वर्ण मुद्राएं दान करने पर जो फल प्राप्त होता है

वही फल भगवान शिव पर सौ फूल चढ़ा देने से ही प्राप्त हो जाता है

शास्त्रों में जो नियम और विधान बताए गए हैं

उसके मुताबिक भगवान को पुष्प अर्पित करने से मिलने वाले फल का महत्व इस प्रकार है

विल्वपत्र चढ़ाने से जन्म-जन्मांतर के पापों व रोग से मुक्ति मिलती है

भगवान शिव को कुशा चढ़ाने से मुक्ति की प्राप्ति होती है

भगवान शिव को दूर्वा चढ़ाने से आयु में वृद्धि होती है

भगवान शिव को धतूरा अर्पित करने से पुत्र रत्न की प्राप्ति व पुत्र का सुख मिलता है

भगवान शिव को कनेर का पुष्प चढ़ाने से परिवार में कलह व रोग से निवृत्ति मिलती हैं

भगवान शिव को शमी पत्र चढ़ाने से पापों का नाश होता है

शत्रुओं का शमन व भूत-प्रेत बाधा से मुक्ति मिलती है

भगवान शिव को कदम्ब का फूल चढ़ाने की मनाही है

भगवान शिव को कभी भी सारहीन फूल या कठूमर का फूल न चढ़ाएं

भगवान शिव को केवड़े का फूल नहीं चढ़ाया जाता

भगवान शिव को शिरीष का फूल चढ़ाने की मनाही है

भगवान शिव को तिन्तिणी का फूल न चढ़ाएं

भगवान शिव को कोष्ठ का फूल नहीं चढ़ाया जाता

भगवान शिव को कैथ का फूल नहीं चढ़ाया जाता

भगवान शिव को गाजर का फूल नहीं चढ़ाया जाताभगवान शिव को बहेड़ा का फूल नहीं चढ़ाया जाता

भगवान शिव को कपास का फूल नहीं चढ़ाया जाता

भगवान शिव को गंभारी का फूल नहीं चढ़ाया जाता

भगवान शिव को पत्रकंटक का फूल नहीं चढ़ाया जाता

भगवान शिव को सेमल का फूल नहीं चढ़ाया जाता

भगवान शिव को अनार का फूल नहीं चढ़ाया जाता

भगवान शिव को धव का फूल नहीं चढ़ाया जाता

भगवान शिव को केतकी का फूल नहीं चढ़ाया जाता

भगवान शिव को वसंत ऋतु मे खिलने वाला कंद-विशेष नहीं चढ़ाया जाता

भगवान शिव को कुंद का फूल न चढ़ाएं

भगवान शिव को जूही का फूल न चढ़ाएं

भगवान शिव को मदन्ती का फूल नहीं चढ़ाया जाता

जल : शिव पुराण में कहा गया है कि भगवान शिव ही स्वयं जल हैं शिव पर जल चढ़ाने का महत्व भी समुद्र मंथन की कथा से जुड़ा है। अग्नि के समान विष पीने के बाद शिव का कंठ एकदम नीला पड़ गया था। विष की ऊष्णता को शांत करके शिव को शीतलता प्रदान करने के लिए समस्त देवी-देवताओं ने उन्हें जल अर्पित किया। इसलिए शिव पूजा में जल का विशेष महत्व है।  

बिल्वपत्र :  भगवान के तीन नेत्रों का प्रतीक है बिल्वपत्र। अत: तीन पत्तियों वाला बिल्वपत्र शिव जी को अत्यंत प्रिय है। प्रभु आशुतोष के पूजन में अभिषेक व बिल्वपत्र का प्रथम स्थान है। ऋषियों ने कहा है कि बिल्वपत्र भोले-भंडारी को चढ़ाना एवं 1 करोड़ कन्याओं के कन्यादान का फल एक समान है। भगवान के तीन नेत्रों का प्रतीक है बिल्वपत्र। 

आंकड़ा : शास्त्रों के मुताबिक शिव पूजा में एक आंकड़े का फूल चढ़ाना सोने के दान के बराबर फल देता है।

धतूरा : भगवान शिव को धतूरा भी अत्यंत प्रिय है। इसके पीछे पुराणों मे जहां धार्मिक कारण बताया गया है वहीं इसका वैज्ञानिक आधार भी है। भगवान शिव को कैलाश पर्वत पर रहते हैं। यह अत्यंत ठंडा क्षेत्र है जहां ऐसे आहार और औषधि की जरुरत होती है जो शरीर को ऊष्मा प्रदान करे। वैज्ञानिक दृष्टि से धतूरा सीमित मात्रा में लिया जाए तो औषधि का काम करता है और शरीर को अंदर से गर्म रखता है। 

 जबकि धार्मिक दृष्टि से इसका कारण देवी भागवत‍ पुराण में बतया गया है। इस पुराण के अनुसार शिव जी ने जब सागर मंथन से निकले हलाहल विष को पी लिया तब वह व्याकुल होने लगे। तब अश्विनी कुमारों ने भांग, धतूरा, बेल आदि औषधियों से शिव जी की व्याकुलता दूर की।

उस समय से ही शिव जी को भांग धतूरा प्रिय है। शिवलिंग पर केवल धतूरा ही न चढ़ाएं बल्कि अपने मन और विचारों की कड़वाहट भी अर्पित करें। 

भांग : शिव हमेशा ध्यानमग्न रहते हैं। भांग ध्यान केंद्रित करने में मददगार होती है। इससे वे हमेशा परमानंद में रहते हैं। समुद्र मंथन में निकले विष का सेवन महादेव ने संसार की सुरक्षा के लिए अपने गले में उतार लिया। भगवान को औषधि स्वरूप भांग दी गई लेकिन प्रभु ने हर कड़वाहट और नकारात्मकता को आत्मसात  किया इसलिए भांग भी उन्हें प्रिय है। भगवान् शिव को इस बात के लिए भी जाना जाता हैं कि इस संसार में व्याप्त हर बुराई और हर नकारात्मक चीज़ को अपने भीतर ग्रहण कर लेते हैं और अपने भक्तों की विष से रक्षा करते हैं। 

कर्पूर : भगवान शिव का प्रिय मंत्र है कर्पूरगौरं करूणावतारं…यानी जो कर्पूर के समान उज्जवल हैं। कर्पूर की सुगंध वातावरण को शुद्ध और पवित्र बनाती है। भगवान भोलेनाथ को इस महक से प्यार है अत: कर्पूर शिव पूजन में अनिवार्य है।  

दूध: श्रावण मास में दूध का सेवन निषेध है। दूध इस मास में स्वास्थ्य के लिए गुणकारी के बजाय हानिकारक हो जाता है। इसीलिए सावन मास में दूध का सेवन न करते हुए उसे शिव को अर्पित करने का विधान बनाया गया है। 

चावल : चावल को अक्षत भी कहा जाता है और अक्षत का अर्थ होता है जो टूटा न हो। इसका रंग सफेद होता है। पूजन में अक्षत का उपयोग अनिवार्य है। किसी भी पूजन के समय गुलाल, हल्दी, अबीर और कुंकुम अर्पित करने के बाद अक्षत चढ़ाए जाते हैं। अक्षत न हो तो शिव पूजा पूर्ण नहीं मानी जाती। यहां तक कि पूजा में आवश्यक कोई सामग्री अनुप्लब्ध हो तो उसके एवज में भी चावल चढ़ाए जाते हैं। 

चंदन : चंदन का संबंध शीतलता से है। भगवान शिव मस्तक पर चंदन का त्रिपुंड लगाते हैं। चंदन का प्रयोग अक्सर हवन में किया जाता है और इसकी खुशबू से वातावरण और खिल जाता है। यदि शिव जी को चंदन चढ़ाया जाए तो इससे समाज में मान सम्मान यश बढ़ता है।  

भस्म : इसका अर्थ पवित्रता में छिपा है, वह पवित्रता जिसे भगवान शिव ने एक मृत व्यक्ति की जली हुई चिता में खोजा है। जिसे अपने तन पर लगाकर वे उस पवित्रता को सम्मान देते हैं। कहते हैं शरीर पर भस्म लगाकर भगवान शिव खुद को मृत आत्मा से जोड़ते हैं। उनके अनुसार मरने के बाद मृत व्यक्ति को जलाने के पश्चात बची हुई राख में उसके जीवन का कोई कण शेष नहीं रहता। ना उसके दुख, ना सुख, ना कोई बुराई और ना ही उसकी कोई अच्छाई बचती है। इसलिए वह राख पवित्र है, उसमें किसी प्रकार का गुण-अवगुण नहीं है, ऐसी राख को भगवान शिव अपने तन पर लगाकर सम्मानित करते हैं। एक कथा यह भी है कि पत्नी सती ने जब स्वयं को अग्नि के हवाले कर दिया तो क्रोधित शिव ने उनकी भस्म को अपनी पत्नी की आखिरी निशानी मानते हुए तन पर लगा लिया, ताकि सती भस्म के कणों के जरिए हमेशा उनके साथ ही रहे।

रुद्राक्ष : भगवान शिव ने रुद्राक्ष उत्पत्ति की कथा पार्वती जी से कही है। एक समय भगवान शिवजी ने एक हजार वर्ष तक समाधि लगाई। समाधि पूर्ण होने पर जब उनका मन बाहरी जगत में आया, तब जगत के कल्याण की कामना वाले महादेव ने अपनी आंख बंद कीं। तभी उनके नेत्र से जल के बिंदु पृथ्वी पर गिरे। उन्हीं से रुद्राक्ष के वृक्ष उत्पन्न हुए और वे शिव की इच्छा से भक्तों के हित के लिए समग्र देश में फैल गए। उन वृक्षों पर जो फल लगे वे ही रुद्राक्ष हैं।

भगवान शिव को जौं अर्पित करने से आपके घर में हमेशा सुख में वृद्धि होती रहेगी। वहीं गेहूं चढ़ाने से आपकी संतान पर कोई समस्या नहीं आएगी। ध्यान रखें ये सभी अन्न भगवान को चढ़ाने के बाद गरीबों में यह वितरत कर दें, साथ ही उनको खाना खिलाएं।

शिवलिंग पर दूध में चीनी मिलाकर चढ़ाने से बच्चों का मस्तिष्क तेज होता है। शिवलिंग पर गन्ने का रस चढ़ाने से सभी सांसारिक सुखों की प्राप्ति होती है।

शिवलिंग में काली मिर्च चढ़ाने से रोगों का नाश होता है। इसके साथ ही सुख-समृद्धि की प्राप्ति होती है।

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