दिल्ली सरकार की लापरवाही से गई 700 गायों और 500 बेघर कुत्तों की जान।

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क्या गऊ हत्या की जिम्मेदारी लेंगे केजरीवाल

दिल्ली सरकार की लापरवाही से गई 700 गायों और 500 बेघर कुत्तों की जान।

केजरीवाल की सरकार के मंत्री और विधायक जब घोटालों के जश्न मे मौज मना रहे थे दिल्ली में अवैध रूप से जमीन पर कब्जे कर गौशाला की निस्साहय गाएं डूब रहीं थीं उनके नाम पर जमीन घेरे माफिया उन्हें बंधा छोड़ कर सुरक्षित ठिकानों पर भाग चुके थे। गहरी काली कृष्ण पक्ष की ये काली रात में जमुना का पानी काल बन इन्हे लील गया। सटक गया। हाय रे कृष्ण, इनकी रक्षा को क्यूं नही आए। क्यूं गौ मां की प्राण रक्षा नहीं की। वो भोली जीव अपनी रक्षा करती कैसे बंधी जो थीं अनजान थी अपने अंत से। 

दिखी थी सुबह एबीपी न्यूज की एक रिपोर्टर ऐसी ही एक जगह लेकिन चैनल ने फोरन उस रिपोर्ट को रोक दिया। और कोई फॉलोअप नहीं दिखाया क्योंकि इनकी सरकार का असली चेहरा जो सामने आ रहा था। कितने संवेदनहीन लोग है। जो सिर्फ केजरीवाल और सिसोदिया के दुख के सांझीदार है वो निरीह पशु की वेदना क्या जाने। 

दिल्ली की गलियों से बेसहारा पशु मृत मिल रहे हैं गायों और कुत्तों की लाशों से से गलियां पटी पड़ी हैं 

1000 से अधिक मासूमों की लाशें एक हफ्ते में मिल चुकी है और अभी भी जारी है। कितने बह गए बहाव में उनका कोई पूछने बताने वाला ही नहीं। 

दिल्ली के घुसपैठियों का एक और दुर्दांत वहशियत भरा कारनामा सामने है। 

क्या ये बेनामी पशु और गाय सिर्फ दूध के  लिए पाली जा रही थीं या उनकी साजिशन हत्या कर के गौकशी की जा रही थी? क्या ऐसा था की उनको इन्होंने वहा काट कर खाने के लिए बंधक बनाया हुआ था? 

क्या यमुना के इस वीरान किंतु घुसपैठियों से गुलजार खादर पुश्ता छेत्र में सब्जी और खेती की आड़ में गौकशी जम कर चल रही थी जिसकी खपत इन इलाकों से सटे रोहिज्ञा बस्ती से ले कर जामिया के भीतर तक थी। 

केजरीवाल के चमचे बेराज पर तो पहुंचे लेकिन कोई एक भी कार्यकर्ता या अधिकारी इन गाय और अन्य जीवों के लिए बाहर नही निकला। अधिकतम तो गौभक्षी ही हैं । इसके कार्यकर्ता जो शाहीन बाग, किसान आंदोलन , दिल्ली दंगों में बढ़ चढ़ कर सेवा सुख ले रहे थे और जो 1.50 लाख लोग जिन्हें रेड लाइट ऑन गाड़ी ऑफ के पोस्टर चौराहों पर दिखाने भर के 20 20 हजार रुपए इसने सरकारी कोष से बांटे नौकरी के नाम पर अब कहां जमींदोज कर दिया उनको जो कोई भी निरीह पशुओं के लिए नहीं निकला। 

दिल्ली के निवासियों का पत्थर मन देखिए। क्या यह संभव है कि किसी ने भी इन हजारों जीवों की करुण पुकार, दारुण चित्कार सुनी ना हो। किसी ने भी उन्हें घर में शरण ना दी। किसी ने भी उनकी सुध ना ली। 

कहां गए पशु रक्षा के नाम पर फैशन का ढोल पीटने वाले बनावट और प्रसिद्धि के लालची लोग। ना कोई चंदे घुमाने वाली एनजीओ निकली। इन्हे बस अपने अकाउंट भरे चाहिए ।

दिल्ली मर चुकी है

ये हजारों लाशें इन असहाय पशुओं की नहीं हैं ये लाशें है दिल्ली के दिखावटी समाज की। दोमुही केजरीवाल सरकार की। जो अपने मतलब और व्यापार के लिए तो आतंकियों के लिए तंबू गाड़े हाईवे रोक देता है लेकिन बेजुबान की हत्या कर उफ्फ तक करता नहीं। 

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