Election Express -ताबूत में पहुंची गांधी नेहरू की कांग्रेस

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कांग्रेस का सिमटता प्रभाव और खतरनाक सोच

Congress is losing its state of having known as a National party. It seems like they are having their last national election hoping as bad as they could even after forming a breakless two tyred logistic truck full of crabs. Could be an end and a hopefully a full stop of Rahul Gandhi’s political career too that have set up an example of the biggest failure of a political prince in Indian history.

यदि आप बुरा न मनाएं तो मैं ‘भारत माता की जय’ का एक नारा लगा लूं।

अपनी देश विरोधी हिंदू और सनातन विरोधी सोच में कांग्रेस ऐसी उलझी है की शीर्ष नेताओं के साथ साथ आम कार्यकर्ता भी राजनीति में अपने भविष्य का क्रियाकर्म साक्षात होते देखने का सौभाग्य प्राप्त कर रहे हैं। 

दुनिया समझ नहीं पा रही की भारत देश को अपने बाप की दुकान समझ कुछ भी बेच देने, दान कर देने वाले आज कुर्ते का पल्ला उठाए घूम तो रहे हैं लेकिन वोट मांगे तो किस मुद्दे पर। ले दे कर एक ही टैग लाइन चिपका रहे हैं लहर नहीं चाहिए । क्योंकि ये लहर नहीं कहर के मुरीद हैं। और मजे की बात यह है की नियति के मारे, ये सारे मोदी की सुनामी से टकराने को एक ही नाव पर चढ़ बैठे हैं समझना देश को है की इस चुनाव में इनकी नाव पलटनी कैसे है। 

कमल की कली चटकेगी

और

जनता फिर इन सबको पटकेगी

कर्नाटक विधानसभा में पिछले दिनों कांग्रेस के वरिष्ठ नेता डीके सुरेश ने कहा कि केंद्र सरकार दक्षिण भारत के राज्यों को कम पैसा मुहैया करवाती है। इससे हो सकता है कि हम दक्षिण के राज्य भविष्य में भारत से अलग होने की सोचें। वैसे तो पूछा जा सकता है कि सुरेश बाबू को दक्षिण के राज्यों का प्रतिनिधि किसने बनाया? तमिलनाडु में कांग्रेस कामराज के बाद से लुप्त प्रजाति में शामिल हो चुकी है।

डीएमके चुनाव के मौसम में उसे कन्धे पर इस लहजे में उठा लेती है जैसे नई पीढ़ी के ज्ञान के लिए ऐतिहासिक चीजों का प्रदर्शन किया जाता है। लेकिन सुरेश बाबू ने जब से यह रहस्योद्घाटन किया है तब से कम से कम प्रदेश में कांग्रेस के लोगों में यह भय बैठ गया है कि कहीं पार्टी विभाजन को लेकर किसी एजेंडा पर तो नहीं चल रही? पिछले दिनों कर्नाटक में कांग्रेस की एक विशाल जनसभा हो रही थी। उसमें कांग्रेस में सोनिया गान्धी परिवार का प्रतिनिधित्व करने वाले पार्टी अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खडग़े भी मंचासीन थे।

कांग्रेस के एक विधायक लक्ष्मण संवादी भी मंच पर थे। वे भाषण दे रहे थे। उनके मन में इच्छा हो रही थी कि वे मंच पर से ‘भारत माता की जय’ का नारा लगाएं। लेकिन डर रहे थे कि कहीं इस नारे से पार्टी अध्यक्ष बुरा न मान जाएं। कुछ देर तक लक्ष्मण के मन में डर और श्रद्धा के बीच द्वन्द्व चलता रहा होगा। लेकिन अन्त में राष्ट्रीयता की जीत हुई। उन्होंने मंच पर से ही मल्लिकार्जुन खडग़े से पूछा कि यदि आप बुरा न मनाएं तो मैं ‘भारत माता की जय’ का एक नारा लगा लूं। आखिर क्या कारण है कि कांग्रेस के कार्यकर्ता जानते हैं कि अब पार्टी में ‘भारत माता की जय’ या ‘जय श्री राम’ का जयघोष करना खतरे से खाली नहीं है। इसका अर्थ स्पष्ट है कि कांग्रेस का आम कार्यकर्ता तो देश को अखंड रखने के लिए या फिर अखंड भारत के लिए लालायित है, लेकिन उसका नेतृत्व अपने संकुचित राजनीतिक हितों के लिए भारत को तोडऩे की हद तक भी जा सकता है।

महात्मा गांधी से लेकर सोनिया परिवार तक की यह यात्रा सचमुच चौंकाती है। यह यात्रा रघुपति राघव राजा राम से शुरू हुई थी और राम मंदिर के निर्माण के विरोध तक ही नहीं, बल्कि राम के अस्तित्व को ही नकारने तक पहुंच गई है। यही कारण है कि पार्टी प्रधान की हाजिरी में कांग्रेस का विधायक ‘भारत माता की जय’ का नारा लगाते हुए भी डरता है कि कहीं पार्टी एक्शन न ले ले। दरअसल पिछले कुछ अरसे से भाजपा ने जनसंघ के समय से चले आ रहे अपने अखंड भारत के संकल्प को ज्यादा जोर से कहना शुरू कर दिया है। तब भी शायद कोई इसको ज्यादा तवज्जो न देता

यदि भाजपा ने भारतीय संविधान में से अनुच्छेद 370 को न हटा दिया होता। इससे लोगों में यह विश्वास जगने लगा है कि पार्टी घोषणा पत्र/संकल्प पत्र में जो लिखती है, उसे पूरा करती है। चाहे उसमें कितना ही समय क्यों न लगे। इसके पहले चरण में तो पाकिस्तान के कब्जे से वे इलाके मुक्त करवाना है जो उसने 1947 में कश्मीर पर हमला करके भारत से छीन लिए थे। इसके संकेत प्रधानमंत्री मोदी अनेक बार दे भी चुके हैं। इससे पाकिस्तान का चिंतित होना स्वाभाविक ही है। लेकिन लगता है पाकिस्तान से ज्यादा चिंता इससे कांग्रेस के नेतृत्व को हो रही है। उस चिंता को व्यक्त करने का तरीका सामान्य नहीं है। उसका कहना है कि भारतीय जनता पार्टी देश को विभाजित करना चाहती है। आरोप इस प्रकार का है कि आम भारतीय को यह हज्म नहीं होता।

सोनिया गांधी परिवार ने ऐसा आरोप मुस्लिम लीग या सीपीएम पर लगाया होता तो शायद भारत के लोग इस पर ज्यादा आश्चर्यचकित न होते। लेकिन यह परिवार ऐसा नहीं कर सकता, क्योंकि इन दोनों के साथ केरल में परिवार का राजनीतिक समझौता है। इसलिए उसने यह आरोप भाजपा पर लगाना आसान मान लिया। लेकिन भाजपा आखिर विभाजन करवाना कैसे चाहती है?

परिवार का कहना है कि भाजपा नार्थ-साऊथ डिवाइड के रास्ते पर चल रही है। लेकिन लोग आखिर इसके लिए प्रमाण की मांग करेंगे ही। वैसे यह जरूरी नहीं है कि राहुल गांधी जो भी कहते रहते हैं, उसके लिए कुछ प्रमाण भी उनके पास होते ही हों। वे स्वयं को इस प्रकार के सभी बंधनों से आजाद मानते हैं। सुरेश बाबू का तर्क यदि गहराई से देखा जाए तो कुछ बातें स्पष्ट हो रही हैं। कांग्रेस का कहना है कि

1. उत्तर भारत, पश्चिमी भारत और कुछ सीमा तक पूर्वी भारत के लोग भारतीय जनता पार्टी को वोट देते हैं, इसलिए केन्द्र में भारतीय जनता पार्टी की सरकार बनती है।

2. दक्षिणी प्रान्तों के लोग भारतीय जनता पार्टी को वोट नहीं देते, इसलिए भारतीय जनता पार्टी इन दक्षिणी क्षेत्रों से नाराज है।

3. भारतीय जनता पार्टी अपनी यह नाराजगी इन दक्षिणी राज्यों से बदला लेकर निकालती है। बदला लेने का तरीका यही अपनाती है कि इन राज्यों को कम पैसा आवंटित किया जाता है।

4. कांग्रेस के वरिष्ठ मंत्री डीके सुरेश इसका एक ही हल बताते हैं कि फिर दक्षिण के राज्यों को देश से अलग होना पड़ेगा। सुरेश बाबू के तर्कों को निश्चय ही देखना पड़ेगा।

सुरेश बाबू कर्नाटक से ताल्लुक रखते हैं। कर्नाटक में मुख्य रूप से दो ही राजनीतिक दल हैं। भारतीय जनता पार्टी और कांग्रेस। वहां एक बार भाजपा और दूसरी बार कांग्रेस सत्ता में आती है। इससे कोई भी अक्लमंद आदमी यह तो नहीं कहेगा कि कर्नाटक के लोग भाजपा को वोट नहीं देते। दूसरा उदाहरण तेलंगाना का ले सकते हैं। तेलांगना में मुख्य रूप से तीन राजनीतिक दल हैं।

कांग्रेस, भारत राष्ट्र समिति और भारतीय जनता पार्टी। इन तीनों दलों को कुछ अंतर से सम्मानजनक वोट मिलते हैं। इसलिए तीनों राजनीतिक दलों की स्थिति राज्य में बराबर है। शेष दक्षिण के तीन राज्य हैं आंध्र प्रदेश, केरल और तमिलनाडु। तमिलनाडु और आंध्र प्रदेश में कांग्रेस और भाजपा की स्थिति लगभग बराबर ही है। इन दोनों की स्थिति नगण्य है। इसका अर्थ हुआ कि दक्षिण के राज्यों में भाजपा और कांग्रेस की स्थिति लगभग बराबर ही है। फिर सुरेश बाबू किस हैसियत से मानते हैं कि कांग्रेस को सभी दक्षिणी राज्यों के प्रतिनिधि के तौर पर बोलने का अधिकार है।

सुरेश बाबू एक बात शायद भूल रहे हैं कि पिछले दिनों जब राज्यसभा के चुनाव में कांग्रेस का एक प्रत्याशी जीता था, तो कर्नाटक विधानसभा के भीतर ही उसके समर्थकों ने खुशी में पाकिस्तान जिंदाबाद के नारे लगाए थे। तब कांग्रेस के ही कुछ बड़े लोगों ने उसकी निंदा करने की बजाय यह तर्क दिया था कि पाकिस्तान हमारा मित्र देश है, उसकी बात करना गलत कैसे हो गया?

शायद उसी के कारण कांग्रेस के आम कार्यकर्ता के मन में कहीं न कहीं डर बैठ गया है कि भारत माता की जय से कांग्रेस नेतृत्व चिढ़ता है और पाकिस्तान जिंदाबाद से नाराज नहीं होता। अंबेडकर को शायद कांग्रेस से इसी बात का अंदेशा था। इसीलिए उन्होंने संविधान सभा में अपने अंतिम संबोधन में चेतावनी दी थी कि हमें इस प्रकार की वृत्तियों से सावधान रहना होगा। इसी के कारण हमारा देश पूर्वकाल में गुलाम होता रहा है। हम अपने निजी स्वार्थों के कारण आपस में ही लडऩे लगे रहते हैं और विदेशी दुश्मन इसका लाभ उठाते हैं।

आज लगता है अंबेडकर को जिस बात का डर था, कांग्रेस नेतृत्व अपने क्षुद्र राजनीतिक स्वार्थों के कारण उसी रास्ते पर चल पड़ा है। पिछले कुछ सालों से राहुल गांधी के बयानों को भी इसी गहरी नजर से देखना चाहिए। वह अमरीका के लोगों को बताते रहे हैं कि भारत को पाकिस्तान समर्थक इस्लामी आतंकवादियों से इतना डर नहीं है जितना राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ से। सौभाग्य है कि कांग्रेस का आम कार्यकर्ता और देश की जनता कांग्रेस नेतृत्व की भारत को विभाजित करने की इस थ्यूरी से सहमत नहीं है। यही कारण है कि वह कांग्रेस नेतृत्व की इस देश विरोधी रणनीति से सचेत होकर उसे नकार रही है।

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