देश का ‘बिकाऊ मीडिया’ – INDIAN MEDIA ON SALE

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भारत विरोधी चीनी एजेंडा

  • यदि कोई भारत-विरोधी, देश को खंडित करने और देश के खिलाफ ‘धुआं-रहित युद्ध’ छेडऩे के अभियानों में संलिप्त है, तो बेशक वह ‘देशद्रोही’ है। उसके खिलाफ यूएपीए, राजद्रोह के कानून और अन्य धाराओं में केस चलाया जाना चाहिए।
  • यदि भारत के खिलाफ किसी देश का एजेंडा है और वह दुष्प्रचार की साजिशें रच रहा है, तो उसके स्वदेशी दलालों, गद्दारों के खिलाफ भी आपराधिक मामले चलने चाहिए।

अमरीका के प्रख्यात अखबार ‘न्यूयॉर्क टाइम्स’ ने कुछ साक्ष्यों और संदर्भों के साथ चीन के मंसूबों को बेनकाब किया है। यह अखबार भारत का हमदर्द भी नहीं है। हमारे देश के खिलाफ बहुत कुछ प्रकाशित होता रहा है, लेकिन अब चीन को नंगा करने वाले आलेख और प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) की छापेमारी के निष्कर्षों में बहुत कुछ समानताएं हैं, लिहाजा चीन का एजेंडा हमारा चिंतित सरोकार है।

हालांकि ईडी ने कथित मीडिया वेबसाइट ‘न्यूज क्लिक’ पर छापे की कार्रवाई फरवरी, 2021 में की थी। छापे लगातार 5 दिन तक चले थे और कंपनी के 10 ठिकानों पर छापे मारे गए थे, जिनमें 38 करोड़ रुपए से अधिक की फंडिंग का खुलासा हुआ था। कुछ पैसा प्रत्यक्ष विदेशी निवेश के जरिए आया और अधिकांश राशि हवाला के जरिए भेजी गई। वेबसाइट के संस्थापक एवं संपादक प्रबीर पुरकायस्थ से भी करीब 11 घंटे तक पूछताछ की गई थी। तब वामदलों और कांग्रेस सरीखे दलों ने मीडिया कंपनी का बचाव किया था और ईडी की कार्रवाई को स्वतंत्र मीडिया और अभिव्यक्ति की आजादी पर हमला करार दिया था।

अब ‘न्यूयॉर्क टाइम्स’ के आलेख से खुलासा हुआ है कि चीन की कम्युनिस्ट पार्टी अमरीकी उद्योगपति नेविल रॉय सिंघम के जरिए भारत की मीडिया कंपनी को ही नहीं, बल्कि माओवादी गौतम नवलखा, सीपीएम के आईटी प्रकोष्ठ के बप्पादित्य सिन्हा, तीस्ता सीतलवाड़, उनके पति एवं बच्चों तथा ऐसे कई स्वतंत्र पत्रकारनुमा चेहरों को भी फंडिंग कराती रही है।

कुछ पत्रकारों की जासूसी के आरोप में गिरफ्तारियां भी की गई हैं। नवलखा भीमा कोरेगांव दंगा केस में अब भी जेल में है। अखबार में छपे आलेख से खुलासा हुआ है कि चीन अफ्रीकी राजनीतिक दलों, गैर लाभकारी संगठनों और तीसरी दुनिया के देशों के कथित पत्रकारों की भी फंडिंग करता रहा है। अमरीकी नेविल रॉय मूलत: श्रीलंका का है और आजकल चीन के शंघाई शहर में रहता है। उसे चीन की कम्युनिस्ट पार्टी की प्रचार मशीनरी का एक अंतरंग हिस्सा माना जाता है। वह खुद को ‘कम्युनिस्ट’ कहलाना पसंद करता है।

चीन की फंडिंग कुछ अमरीकी कंपनियों और ब्राजील की एक कंपनी के जरिए की गई है, जिसे ‘न्यूज क्लिक’ में विदेशी निवेश दिखाया गया है। इस नापाक नेटवर्क का सरगना नेविल रॉय ही है। ‘न्यूयॉर्क टाइम्स’ में ये तमाम खुलासे छपने के बाद भाजपा के लोकसभा सांसद निशिकांत दुबे ने सदन में यह मुद्दा उठाया और सरकार से जांच का आग्रह किया। सूचना-प्रसारण मंत्री अनुराग ठाकुर ने चीन की कम्युनिस्ट पार्टी और कांग्रेस की कथित मिलीभगत और राजीव गांधी फाउंडेशन को मिले चीनी चंदे सरीखे पुराने मुद्दे एक बार फिर खोल दिए।

दरअसल चीन अपने दुष्प्रचार के अभियान को चलाए रखने और चीनी एजेंडे की व्यापक कवरेज के लिए यह अवैध फंडिंग करता रहा है। यह भी बताया जा रहा है कि ‘न्यूज क्लिक’ चीन की कम्युनिस्ट पार्टी का हथियार है।

चीन बुनियादी तौर पर हमारा दुश्मन देश है, बेशक उसके साथ लाखों करोड़ रुपए का कारोबार करना हमारी मजबूरी है।

यदि देश का मीडिया इस तरह ‘बिकाऊ’ होने लगा और चीन के गुणगान करने लगा, तो जनता का भरोसा भी उठेगा और देश भी कमजोर होगा। इस नापाक फंडिंग का देशव्यापी विरोध करने के बजाय हम इस बहस में उलझे रहेंगे कि चीन ने हमारी कितनी जमीन कब्जा रखी है, लद्दाख और गलवान में क्या हुआ, चीन ने हमारे सैनिकों को पीट दिया, तो यही दुष्प्रचार चीन चाहता है।

चीन इसी तरह भारत को विभाजित करना चाहता है। भारत को वैश्विक स्तर पर बदनाम करना चाहता है। लिहाजा ‘काली भेड़ों’ को दंडित करें और चीन के षड्यंत्र का माकूल जवाब दें। तभी चीन का एजेंडा नाकाम हो सकता है। सीमा पर भी चीन बार-बार हरकत करता रहता है। उसे करारा जवाब दिया जाना चाहिए।

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