Karwa chauth is not just a ordinary festival it is a Global symbol of Love, devotion, bonding and relationship of a Husband and wife. It gives us immense pleasure to share some pauranik happenings connected with this special day call Karwa Chauth to be celebrated on Oct. 20, 2024 .

करवा चौथ: परंपरा, कथा और अनसुनी कहानियाँ
परिचय: करवा चौथ भारत के प्रमुख त्योहारों में से एक है, जो मुख्य रूप से उत्तर भारत में मनाया जाता है। इस व्रत में महिलाएँ अपने पति की लंबी उम्र और स्वास्थ्य के लिए निर्जल व्रत रखती हैं और चंद्रमा को अर्घ्य देने के बाद व्रत तोड़ती हैं। यह त्योहार विवाहिता महिलाओं के बीच विशेष रूप से लोकप्रिय है और उनके समर्पण, प्रेम और भक्ति का प्रतीक है। करवा चौथ की परंपराओं और प्रमुख कथा से अधिकांश लोग परिचित हैं, लेकिन इस पर्व से जुड़ी कई ऐसी अनसुनी कहानियाँ भी हैं, जिन्हें कम लोग जानते हैं।

1. करवा चौथ का मूल और नामकरण:
करवा चौथ नाम का अर्थ है “करवा” (मिट्टी का बर्तन) और “चौथ” (चतुर्थी तिथि)। इस व्रत में करवा का विशेष महत्व है, जो पूजा में इस्तेमाल होता है और बाद में इसे बहू को आशीर्वाद स्वरूप दिया जाता है। मान्यता है कि यह व्रत मुख्य रूप से नई नवेली दुल्हनों द्वारा किया जाता था, जो अपने पति के दीर्घायु की कामना करती थीं और मिट्टी के करवा का आदान-प्रदान करती थीं। इससे एकता और स्नेह का प्रतीक माना जाता था।
2. महाभारत से जुड़ी कथा:

करवा चौथ से जुड़ी एक अनसुनी कहानी महाभारत के समय की है। कहते हैं कि जब अर्जुन तपस्या के लिए नीलगिरी पर्वत पर गए थे, तब द्रौपदी को उनके कुशलक्षेम की चिंता सताने लगी। उन्होंने भगवान श्रीकृष्ण से इस चिंता को साझा किया। भगवान कृष्ण ने उन्हें करवा चौथ का व्रत करने का सुझाव दिया और अर्जुन की रक्षा के लिए इस व्रत के प्रभाव से उनकी लंबी उम्र की कामना की। द्रौपदी ने कृष्ण की सलाह पर यह व्रत रखा, जिससे अर्जुन की रक्षा हो सकी और वे सुरक्षित लौट आए।
3. वीरवती की कथा:

वीरवती की कथा करवा चौथ से जुड़ी सबसे प्रसिद्ध कहानियों में से एक है। वीरवती एक सुन्दर और धर्मपरायण रानी थी, जिसने अपने पति की लंबी आयु के लिए करवा चौथ का व्रत रखा। दिनभर भूखी-प्यासी रहने के बाद, वह अत्यधिक कमजोर हो गई। उसके भाई उसकी हालत देखकर चिंता में पड़ गए और एक कृत्रिम चंद्रमा बना दिया ताकि वीरवती व्रत तोड़ सके। लेकिन जैसे ही उसने व्रत तोड़ा, उसे अपने पति की मृत्यु का समाचार मिला। वीरवती ने देवी मां की पूजा की और अपने पति को पुनः जीवन दान दिलाया। इस कथा से यह मान्यता जुड़ी है कि करवा चौथ का व्रत पूर्ण निष्ठा और सत्यता से करना चाहिए।
4. सत्यवान-सावित्री की कथा:

करवा चौथ से एक अन्य प्रसिद्ध कथा सत्यवान और सावित्री की है। सावित्री ने यमराज से अपने पति सत्यवान के प्राण वापस पाने के लिए अपना साहस और धैर्य दिखाया। उसने यमराज से अपने पति की आत्मा को वापस लाने के लिए आग्रह किया और अपने व्रत और भक्ति से यमराज को प्रसन्न किया। यह कथा करवा चौथ के साथ जुड़ी हुई है, क्योंकि सावित्री ने अपने पति की लंबी आयु के लिए उपवास और भक्ति की शक्ति का प्रदर्शन किया।
5. करवा चौथ और सती करवा की कथा:

एक और अनसुनी कहानी है सती करवा की, जिसके नाम पर इस व्रत का नाम रखा गया है। करवा अपने पति से असीम प्रेम करती थीं और उनकी लंबी उम्र की कामना करती थीं। एक दिन उनका पति नदी में स्नान करते समय एक मगरमच्छ द्वारा पकड़ लिया गया। करवा ने अपने पति को बचाने के लिए दृढ़ निश्चय से यमराज को बुलाया और उनसे मगरमच्छ को मृत्यु का दंड देने की प्रार्थना की। करवा की भक्ति और समर्पण से यमराज प्रसन्न हुए और उन्होंने मगरमच्छ को श्राप देकर मार डाला और करवा के पति को जीवनदान दिया। तभी से यह माना जाता है कि करवा चौथ का व्रत सच्चे प्रेम और भक्ति से करने से पति की सुरक्षा होती है।
6. प्राचीन समय की सुरक्षा की परंपरा:

प्राचीन समय में जब युद्ध और अन्य कठिनाइयाँ आम थीं, महिलाएँ अपने पतियों के लिए सुरक्षा और कुशलता की कामना करती थीं। युद्ध में जाने से पहले करवा चौथ के दिन महिलाएँ व्रत रखती थीं और अपने पति की कुशलता के लिए देवी मां की पूजा करती थीं। यह पर्व उस समय विशेष महत्व रखता था जब पुरुष लंबे समय तक घर से दूर रहते थे और महिलाएँ उनकी रक्षा के लिए उपवास और प्रार्थना करती थीं।
7. कृषि संस्कृति और सामाजिक जुड़ाव:
एक अन्य पहलू से देखा जाए तो करवा चौथ का त्योहार कृषि संस्कृति से भी जुड़ा है। यह त्योहार उस समय मनाया जाता है जब खेती का काम समाप्त हो चुका होता है और खेतिहर परिवार नई फसल का आनंद लेने की तैयारी कर रहे होते हैं। उस समय महिलाएँ आपस में मिल-जुलकर यह पर्व मनाती थीं, जिससे समाज में एकता और भाईचारे की भावना बढ़ती थी। इस दिन महिलाएँ एक-दूसरे के साथ करवा (मिट्टी के बर्तन) का आदान-प्रदान करती थीं, जो उनकी सामाजिक बंधन को मजबूत करता था।

8. आधुनिक युग में करवा चौथ:
आज के समय में करवा चौथ का स्वरूप भले ही बदल गया हो, लेकिन इसकी भावना और परंपराएँ अब भी जीवित हैं। अब यह त्योहार केवल उत्तर भारत में ही नहीं, बल्कि पूरे भारत में और विदेशों में भी धूमधाम से मनाया जाता है। आधुनिक समय में करवा चौथ को फैशन, सौंदर्य और प्रेम के प्रतीक के रूप में भी देखा जाता है। फिल्में, टीवी शो और सोशल मीडिया ने इस त्योहार को और अधिक लोकप्रिय बना दिया है, जिससे इसे मनाने का तरीका भी बदल रहा है।

करवा चौथ केवल एक व्रत नहीं है, यह प्रेम, विश्वास, और समर्पण का प्रतीक है। इसके साथ जुड़ी पौराणिक कथाएँ और अनसुनी कहानियाँ इसे और भी खास बनाती हैं। चाहे वह वीरवती की कथा हो, या सती करवा की, हर कथा यह दर्शाती है कि सच्चे प्रेम और भक्ति से कुछ भी संभव है। आधुनिक युग में भी करवा चौथ का महत्व उतना ही है, जितना प्राचीन काल में था, और यह सदियों से पति-पत्नी के बीच के रिश्ते को और मजबूत करता आ रहा है।