ज्ञानवापी का सच

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ज्ञानवापी परिसर का सर्वे आरंभ हो चुका है। इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) द्वारा सर्वे को ‘न्यायहित’ में अनिवार्य माना है। सर्वे वैज्ञानिक होगा और किसी भी तरह की खुदाई नहीं की जाएगी। ‘ग्राउंड पेनिटे्रटिंग रडार’ (जीपीआर) तकनीक का इस्तेमाल कर सर्वे किया जाएगा। फोटोग्राफी का भी इस्तेमाल किया जाएगा।

सर्वोच्च अदालत की संविधान पीठ ने भी अयोध्या विवाद का फैसला एएसआई के सर्वे और खुदाई के आधार पर दिया था। एएसआई भारत सरकार की संस्था है और इसके पुरातात्विक निष्कर्षों को अधिकृत और विज्ञान-सम्मत माना जाता रहा है। इलाहाबाद अदालत ने मस्जिद कमेटी की दलीलों को खारिज कर दिया कि सर्वे से मस्जिद को नुकसान पहुंच सकता है। इन दावों को बेदम करार दिया गया।

‘अंजुमन इंतेजामिया कमेटी’ ने उच्च न्यायालय के फैसले को सर्वोच्च अदालत में चुनौती दी है। प्रधान न्यायाधीश जस्टिस चंद्रचूड़ ने इसकी तुरंत सुनवाई को मंजूरी भी दी है, लेकिन सर्वे जारी रहेगा। फिलहाल ज्ञानवापी की इमारत को मस्जिद तो नहीं कहा जा सकता। मंदिर का अंतिम फैसला सर्वोच्च अदालत करेगी।

हम इस विवाद को अदालत के भरोसे छोड़ते हैं, लेकिन ऐसे अनेक ऐतिहासिक साक्ष्य हैं, जो ज्ञानवापी को मंदिर साबित करते हैं। ये साक्ष्य कई पुस्तकों में संकलित किए गए हैं। यह बादशाह औरंगजेब की हुकूमत के दस्तावेजों से भी स्पष्ट है कि 1669 में मंदिर को तोड़ कर मस्जिद का निर्माण कराया गया था।

चूंकि कथित मस्जिद समतल जमीन पर नहीं बनी है। जमीन किसी शख्स या संस्था ने दान भी नहीं की है। जमीन को खरीदा भी नहीं गया है, लिहाजा इतिहासकार इस्लाम के मुताबिक इसे ‘हराम’ मानते हैं। हम ऐसी दलीलों को भी इतिहास मान कर छोड़ देते हैं। इस संदर्भ में वाराणसी की जिला अदालत ने दो कोर्ट कमिश्नरों की अध्यक्षता में ज्ञानवापी परिसर का सर्वे कराया था।

14 मई, 2022 को जिन वकीलों ने सर्वे में भूमिका अदा की थी, उनके मुताबिक ज्ञानवापी के भीतर पान के पत्ते के आकार की फूल की आकृतियां, त्रिशूल, स्वास्तिक, दीवार पर अंकित श्लोक और 4 तहखाने भी हैं। काफी संख्या में कमल के फूल की कलाकृति पत्थरों पर खुदी दिखी। एक खंभे पर हिंदी में 7 पंक्तियों में कुछ शब्द उकेरे दिखे। छत वाले तीन गुंबदों के अंदर त्रिशंकु शिखरनुमा आकृतियां दिखीं। भीतरी भाग मंदिर-सा लगता है।

उत्तर से पश्चिम दीवार के कोने पर मंदिर का मलबा पड़ा है, जिसमें देवी-देवताओं की कलाकृतियां और अन्य शिलापट्ट थे। शिलापट्ट पर शेषनाग की आकृति अंकित है। एक और शिलापट्ट पर सिंदूरी रंग की उभरी हुई कलाकृति है। देव-विग्रह में 4 मूर्तियों की आकृतियां थीं। दीपक जलाने की जगह बनी हुई थी। दीवारें, नींव, खंभा, कुंड, गर्भगृह का दरवाजा, वजूखाने की ओर नंदी का मुख, घंटियां आदि की आकृतियां छपी हुई नहीं, उकेरी हुई थीं।

क्या किसी मस्जिद में ऐसी कलाकृतियां, आकृतियां और संरचनाएं होती हैं? ‘स्कंदपुराण’ में भी ज्ञानवापी का विस्तृत उल्लेख है। कथित मस्जिद करीब 400 साल या 600 साल अथवा 1000 साल पुरानी है, इस तथ्य पर भी मुस्लिम संगठनों, नेताओं और धर्मगुरुओं में मतैक्य नहीं है। दरअसल दलीलें ये भी दी जा रही हैं कि उपासना स्थल कानून, 1991 के मद्देनजर इस कथित मस्जिद से छेड़छाड़ नहीं की जा सकती।

बहरहाल इसकी अंतिम व्याख्या तो सर्वोच्च अदालत ही करेगी, लेकिन इस कानून की संवैधानिकता पर सवाल करने वाली कुछ याचिकाएं शीर्ष अदालत के ही विचाराधीन हैं। सभी पक्षों को उस निर्णय की भी प्रतीक्षा करनी चाहिए। गौरतलब यह है कि भारत में ऐसी विवादास्पद 40,000 के करीब मस्जिदों की सूची तैयार की हुई है।

क्या सभी को चुनौती दी जाएगी? क्या मस्जिदों को ढहा कर मंदिरों के निर्माण किए जाएंगे? कोई जरूरी है कि इतिहास की गलतियों को दोहराया जाए और गड़े मुर्दे उखाड़े जाएं? यदि इसी तरह 2024 के लिए ‘मंदिर मार्ग’ खोले जाने हैं, तो फिर जनता तय करे। देश के लिए अमन-चैन और भाईचारा सबसे जरूरी है। सुप्रीम कोर्ट ने यह जरूर कहा है कि सर्वे पर आपत्ति नहीं होनी चाहिए।

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