– “सम्राट अशोक” की जन्म-जयंती April 8 हमारे देश में क्यों नहीं मनाई जाती ?
“जो जीता वही चंद्रगुप्त” ना होकर, “जो जीता वही सिकन्दर” कैसे हो गया ??
– बहुत सोचने पर भी, “उत्तर” नहीं मिलता! आप भी इन “प्रश्नों” पर विचार करें!
– सम्राट अशोक के जीवन से 6 लर्निंग
आखिर क्यों किसी भी सरकार ने सम्राट अशोक की जन्म जयंती April 8 and 2327th का उत्सव मनाना जरूरी नहीं समझा। सम्राट अशोक के अखंड भारत में दिए योगदान को ही खंड खंड कर दिया गया। अक्रांता मुगलों की औलादें क्यों महान बताई गई।
क्यों भारत की गुणवान जनता ने अपने पूर्वजों के बलिदान को तो खारिज किया लेकिन लुटेरों का गुनगान करती रही। देश में पनपते विघटनकारी तबके और आतंकियों का सिर नही कुचला बल्कि उन्हें गले लगाया।
प्राचीन काल में एक वंश बहुत ही लोकप्रिय हुआ जिसके बारे में आज भी सभी लोग पढ़ते है। उस वंश में एक से बढ़कर एक शूरवीर, शक्तिशाली और विश्वप्रसिद्ध राजा हुए थे उसी वंश से एक राजा सम्राट अशोक भी हुए जिन्हें लोग उनके कार्यो और अखंड भारत पर शासन के लिए जनता है। अशोक मौर्य वंश के तीसरे शासक थे कहा जाता है की अशोक एक धार्मिक सहिष्णु और बौध धर्म के सबसे बड़े अनुयायी भी थे।
‘चक्रवर्ती सम्राट अशोक’ का अर्थ होता है सम्राटों का सम्राट और यह उपाधि सम्राट अशोक को दिया गया था अशोक के अलावा यह उपाधि भारत के अन्य किसी भी शासक को नही दिया गया है। यह उपाधि ही अशोक के महानता को दिखाने के लिए काफी है।
अशोक के शासन काल में मौर्य वंश की सीमा पूर्व में बांग्लादेश एवं पाटलिपुत्र से लेकर पश्चिम में ईरान और बलूचिस्तान था इतना ही नही मौर्य साम्राज्य का शासन उत्तर में हिन्दुकुश एवं तक्षशिला से लेकर दक्षिण में गोदावरी नदी एवं मैसूर तक फैला था। इन सभी जगहों को आज के वर्तमान समय से तुलना किया जाये तो यह पुरे भारत, नेपाल, अफगानिस्तान, बांग्लादेश, पाकिस्तान और भूटान सभी देशो पर मौर्य वंश का शासन था जिसे अखंड भारत के रूप में जाना जाता था। तो चलिए सम्राट अशोक का इतिहास, जीवन परिचय आदि के बारे भी विस्तार से जानते है।
सम्राट अशोक का जीवन परिचय.
नाम | सम्राट अशोक |
जन्म | April 8 and 2327th 304 ईसा पूर्व |
जन्म स्थान | पाटलिपुत्र , वर्तमान पटना (बिहार) |
पिता का नाम | बिन्दुसार |
माता का नाम | सुभद्रांगी (धर्मा) |
पत्नी का नाम | देवी, कारूवाकी, असंधिमित्रापद्मावती, तिष्यरक्षिता |
संतान का नाम | महेंद्र, संघमित्राकुणाल, चारुमतीतीवल |
वंश का नाम | मौर्य वंश |
उपाधि | प्रियदर्शी |
राज्याभिषेक | 270 ईसा पूर्व |
मृत्यु | 232 ईसा पूर्व |
समाधि | पाटलिपुत्र, वर्तमान पटना |
जिस “सम्राट” के नाम के साथ संसारभर के इतिहासकार “महान” शब्द लगाते हैं
जिस -“सम्राट” का राज चिन्ह “अशोक चक्र” भारतीय अपने ध्वज में लगाते है l
जिस “सम्राट” का राज चिन्ह “चारमुखी शेर” को भारतीय “राष्ट्रीय प्रतीक” मानकर सरकार चलाते हैं l और “सत्यमेव जयते” को अपनाया है l जिस देश में सेना का सबसे बड़ा युद्ध सम्मान, सम्राट अशोक के नाम पर, “अशोक चक्र” दिया जाता है l
जिस सम्राट से पहले या बाद में कभी कोई ऐसा राजा या सम्राट नहीं हुआ”…जिसने “अखंड भारत” (आज का नेपाल, बांग्लादेश, पूरा भारत, पाकिस्तान, और अफगानिस्तान) जितने बड़े भूभाग पर एक-छत्र राज किया हो l
सम्राट अशोक के ही, समय में ” २३ विश्वविद्यालयों” की स्थापना की गई l जिसमें तक्षशिला, नालन्दा, विक्रमशिला, कंधार, आदि विश्वविद्यालय प्रमुख थे l इन्हीं विश्वविद्यालयों में विदेश से छात्र उच्च शिक्षा पाने भारत आया करते थे।
जिस – “सम्राट” के शासन काल को विश्व के बुद्धिजीवी और इतिहासकार, भारतीय इतिहास का सबसे “स्वर्णिम काल” मानते हैं।
जिस “सम्राट” के शासन काल में भारत “विश्व गुरु” था l “सोने की चिड़िया” था l जनता खुशहाल और भेदभाव-रहित थी l
जिस सम्राट के शासन काल में, सबसे प्रख्यात महामार्ग “ग्रेड ट्रंक रोड” जैसे कई हाईवे बने l २,००० किलोमीटर लंबी पूरी “सडक” पर दोनों ओर पेड़ लगाये गए l “सरायें” बनायीं गईं..l
मानव तो मानव..,पशुओं के लिए भी, प्रथम बार “चिकित्सा घर” (हॉस्पिटल) खोले गए l पशुओं को मारना बंद करा दिया गया l
ऐसे “महान सम्राट अशोक” जिनकी जयंती उनके अपने देश भारत में क्यों नहीं मनायी जाती ?? न ही कोई छुट्टी घोषित की गई है?
दुख: है कि, जिन नागरिकों को ये जयंती मनानी चाहिए… वो अपना इतिहास ही भुला बैठे हैं, और जो जानते हैं, वो ना जाने क्यों मनाना नहीं चाहते??
“जो जीता वही चंद्रगुप्त”* ना होकर, *”जो जीता वही सिकन्दर” कैसे हो गया??
जबकि ये बात सभी जानते हैं, कि सिकन्दर की सेना ने चन्द्रगुप्त मौर्य के प्रभाव को देखते हुए ही लड़ने से मना कर दिया था। बहुत ही बुरी तरह से मनोबल टूट गया था और सिकंदर को “वापस लौटना” पड़ा था।
बौद्ध अवशेष बचाओ अभियान से जुड़े भंते तिस्सावरो ने यह दावा करते हुए कहा कि वे नालंदा, मगध, पटना और दिल्ली समेत कई विश्वविद्यालयों से पीएचडी करने वाले शोधार्थियों से मिल चुके हैं। किसी को भी यह जानकारी नहीं है कि सम्राट अशोक की मृत्यु कब, कहां व कैसे हुई। उन्होंने दावा करते हुए कहा कि बुद्धिष्ट सर्किट बौद्ध गया, वैशाली, कुशीनगर, लुंबिनि, श्रावस्ती, नालंदा और राज गिर में भी ऐसे कोई प्रमाण नहीं हैं। सम्राट अशोक की पुण्यतिथि के बारे में भी नहीं अफसोस जाहिर करते हुए भंते जी ने कहा कि ब्रिटिश काल में और आजादी मिलने के बाद सरकारों ने इस मामले को गंभीरता से नहीं लिया।
आइए हम सब मिलकर इस “ऐतिहासिक भूल” को सुधार करने की शपथ लें
एक महान राजा सम्राट अशोक मौर्य – उन्हें महान कहा जाता है क्योंकि बेहद पावरफुल होते हुए भी उन्होंने दया और करुणा का मार्ग चुना। उनका एम्पायर लगभग पूरे इंडियन सबकॉन्टिनेंट में फैला था। उन्होंने 269 से 232 ईसा पूर्व तक 37 वर्षों तक शासन किया। इतिहासकार एचजी वेल्स बताते हैं कि राजाओं के हजारों नामों के बीच अशोक का नाम एक अकेला चमकता सितारा है।
चेंज ऑफ हार्ट
अशोक, जैन सम्राट चंद्रगुप्त मौर्य का पोता था और सिंहासन पर कब्जा करने के लिए अपने सौतेले भाइयों को खत्म करने में वह क्रूर रहा था। वह कलिंग (वर्तमान ओडिशा) पर हमला करने वाला पहला राजा था। अशोक की जीत लाखों सैनिकों के खून से सनी हुई थी। अनगिनत महिलाओं और बच्चों के शवों के भूतिया नजारे ने अशोक को झकझोर दिया। जहां कोई दूसरा राजा इग्नोर करते हुए आगे बढ़ जाता, अशोक ने फिर कभी युद्ध न करने का संकल्प लिया। बौद्ध धर्म में रूटेड, शांति की एक व्यापक थ्योरी भी बनाई।
सच का सामना
पूरे देश में लगाए शिलालेखों को पढ़ने से समझ आता है, कि उनका ह्रदय परिवर्तन (चेंज ऑफ हार्ट) काफी डीप रहा होगा।
अपने एकांत के पलों में अशोक को ये विचार आए होंगे, ‘ये मैंने क्या किया है? ये जीत है या हार? ये न्याय है या अन्याय? क्या मासूम बच्चों और महिलाओं को मारना वीरता है?’ यही उनका सच्चाई से सामना था। इसके लिए कैरेक्टर और करेज चाहिए।
इसके बाद वे बुद्ध की शिक्षाओं के प्रति आकर्षित हुए और जल्द ही एक धर्मनिष्ठ बौद्ध बन गए। उन्होंने खुद को पियादसी कहा, जिसका अर्थ है ‘देवताओं का प्रिय’। उनका साधु-राजा में समग्र परिवर्तन हुआ। उन्होंने अब कहा- सभी पुरुष मेरे बच्चे हैं। मैं उनके लिए पिता के समान हूं। मेरी इच्छा है कि सभी पुरुष हमेशा खुश रहें। अपने शासन के 20वें वर्ष के दौरान अशोक ने पूरे सबकॉन्टिनेंट में शांति फैलाने का कार्य किया।
सम्राट अशोक के जीवन से 6 लर्निंग
1) सेल्फ-इम्प्रूवमेंट: अशोक की कहानी से निकलने वाला पहला सच सेल्फ-इवैल्यूएशन द्वारा स्वयं को बुरे से अच्छे और अच्छे से बेहतर में बदलने की क्षमता है। यदि अशोक ने अपने पिछले कर्मों पर सेल्फ-इवैल्यूएशन नहीं किया होता तो वह अपने स्वभाव में सुधार के बारे में कभी नहीं सोचते। सेल्फ-इवैल्यूएशन में उनके दोषों पर ध्यान देना और उन्हीं परिस्थितियों में उनकी प्रतिक्रिया में भारी बदलाव के साथ अपने तरीकों को सुधारना शामिल था। इस प्रकार, जबकि उन्होंने पहले युद्ध का प्रचार किया, बदले हुए अशोक शांति में विश्वास करते थे।
2) कम्युनिकेशन के नवीनतम साधन: अशोक के जीवन से दूसरी बड़ी सीख नवीनतम कम्युनिकेशन साधनों का उपयोग अपने विचारों को एफेक्टिवली एक्सप्रेस करने के लिए है। एक ऐसा विचार जो निश्चित रूप से सोशल मीडिया से जुड़ी पीढ़ी को पसंद आएगा। अशोक के शिलालेख (रॉक एडिक्ट्स) न केवल उनके एम्पायर की मेन स्क्रिप्ट ब्राह्मी बल्कि ग्रीक, अरामी (एक प्राचीन फारसी लिपि) और उत्तर-पश्चिम भारत की लोकल स्क्रिप्ट खरोष्ठी में भी उकेरे गए थे। मैसेज ग्लोबल थे।
3) विदेश नीति: बॉर्डर पर पीस सुनिश्चित करने के लिए अशोक की विदेश नीति के स्मार्ट यूज को देखिए – उन्होंने कलिंग की विजय के बाद पांच यूनानी शासकों के साथ कॉन्टैक्ट बनाए रखा। अशोक बातचीत से शांति करने के लिए इस तरह की ग्लोबल ट्रीटी करने वाले पहले भारतीय शासक रहे होंगे। पड़ोसियों के साथ अशोक के पीसफुल संबंध निश्चित रूप से भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू, जो देश के पहले विदेश मंत्री भी थे, के लिए एक प्रेरणा थे।
4) एनिमल प्रोटेक्शन राइट्स: अशोक की अवांछित बलिदानों से जानवरों की सुरक्षा की नीति ने शाकाहार को भारतीय जीवन का एक अभिन्न अंग बनाने की दिशा में आंदोलन शुरू किया। एनिमल राइट्स के दृष्टिकोण से देखा जाए तो, अशोक की नीति पालतू जानवरों के प्रति दयापूर्ण व्यवहार और दुनिया में वाइल्ड लाइफ प्रोटेक्शन के लिए एक माइलस्टोन है। (अशोक ने नॉन-वेज फूड पर बैन नहीं लगाया)
5) समानता: अशोक ने एक वेलफेयर स्टेट बनाया, और अपने चार दशक लंबे शासन में सभी विषयों के लिए समान कानूनों और दंड के साथ अपनी आबादी के कल्याण में लगभग पिता के समान रुचि ली। जल जलाशयों के विकास / सुधार पर राज्य का धन खर्च किया, छायादार वृक्षों से अटे राजमार्ग, कुएं, बाग और यात्रियों के लिए सार्वजनिक अतिथि गृह बनवाए गए।
6) पेशेंस (धैर्य): टॉलरेंस की उनकी सलाह एक शिलालेख में सामने आती है जहां उन्होंने घोषणा की, ‘सभी संप्रदाय किसी न किसी कारण से सम्मान के पात्र हैं। इस प्रकार कार्य करने से मनुष्य न केवल अपने सम्प्रदाय को ऊंचा उठाता है बल्कि अन्य लोगों के सम्प्रदायों और सामान्य रूप से मानवता की भी सेवा करता है।’ वे मजबूती से सर्वधर्म समभाव की बात करते हैं।
तो सम्राट अशोक से हम यह संपूर्ण सेल्फ-ट्रांसफॉर्मेशन कैसे करें, की क्वालिटी सीख सकते हैं।